यही सब चल रहा है बरसों से
हो रहा सीताहरण सदियों से
सभ्यता का कर रहे चीरहरण
मना रहे शोक कर अपनो का मरण
ना स्वयं अब जिवीत हैं
ना जिवीत है इनमें मानवता
विलास का करते है सम्भोग
फैला रहे केवल दानवता
यही सब चल रहा है बरसों से
अम्ल बह रहा है नैनों से
कलम भी आज दासी हो चली
वो भी आज कोठे पर नीलाम हो चली
जागरूकता का नाम असहिष्णुता हो गया
पत्रकारिता राजनेताओं की रखैल हो चली
यही सब चल रहा बरसों से
सत्ता के गलियारों में अब भारत माता रो पड़ी
सीता को ना छोड़ा इन्होंने
द्रौपदी का भी चीर हरण कर दिया
कलाम को अब अपनी दासी बनाकर
भारत माँ को भी नीलाम कर दिया।।
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