ता ज़िन्दगी मैं सुनता रहा

ता ज़िन्दगी मैं खामोश रहा
खामोश दर्द में जीता रहा
क़ि सोचता था कभी ज़िन्दगी में
मैं हाल-ए-दिल बयां करूँगा

सुनते सुनते होश खो गए
हाल-ए-दिल बयां ना हुआ
दर्द अपनी हद से आज़ाद हुआ
फिर भी शब्द जुबां पर ना आए

आज सोचा था मेरे अपने होंगे
जो मुझमें एक इंसां देखेंगे
शायद वो मुझे समझेंगे
कभी बैठ साथ मेरी सुनेंगे

जब प्लाट देखा मैंने ज़िन्दगी को
पाया, ता ज़िन्दगी मैं सुनता रहा
खामोशियों में जीत रहा
कहने को अब, ना कोई मेरा अपना रहा।।

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