Month: January 2017

कल्पना

कल्पना मेरी जीती है शब्दों में शब्दों से हूँ मैं खेलता कल्पना में नहीं जी सकता मैं जीता हूँ कल्पना अपनी शब्दों में जीवन कल्पना नहीं एक सच है कल्पना में जीना नहीं है मुझे शब्दों को पिरो मैं लिखता हूँ वर्णमाला से गीत बनाता हूँ शब्दों में मेरे एक सच है  जीती है इनमें …

जीवन कलह

कलह अंतर्मन का कहता है मेरी सुन हृदयालाप कहे तू मेरी सुन मष्तिष्क में भी मचा है कोलाहल नहीं है स्थिर जीवन, पनप रहे उग्र विचार नहीं चाहता जीवन में कोई अल्पविराम नहीं चाहता कोई जीवन में स्थिर कोलाहल किन्तु जीवन फिर भी है अस्थिरजीवन में फिर भी है एक कलह हलाहल जीवन की मैं पी चुका कोलाहल फिर भी मिटा नहीं जीवन …