जब कभी कविता की पंक्तियाँ पढ़ता हूँ तो भाषा का अनुचित प्रयोग का ज्ञान होता है हिंदी में कही जाने वाली पंक्तियों में अन्य भाषाओं के शब्दों का समावेश होता है ना जाने कहाँ विलीन हो गई है परिपक्वता अब तो काव्य की रचना मैं भी है अराजकता भावनात्मक विश्लेषण भी अब नहीं है होता …
Month: May 2017
कहीं दिन कहीं रात की है बात कि लफ़्ज़ों से मुलाक़ात की है बात नहीं कोई शिकवा किसी लम्हे से हमें गर इस नज़्म का तकल्लुफ़ ना हो तुम्हें कि यहीं एक बात से निकलती है एक बात कहीं दिन तो कहीं रात में गुज़रती है बात लफ़्ज़ों से कहीं तो कहीं अदाओं से कही …
ज़िन्दगी से जो मिला वो गम ना थे कुछ गर वो थे तो लम्हों के तज़ुर्बे सीने से लगाया जिन्हें वो गम ना थे कुछ गर वो थे तो तमन्नाओं के जनाजे तसव्वुर से थे वो लम्हे हमारे जिन्हें हमने बुना था तमन्नाओं के सहारे तजुर्बों ने हमको दिखाई ऐसी असलियत कि गमों से लगा …
ना हालात ना ही आसार मेरी ज़िंदगी हैकि ज़िन्दगी नहीं बनती इनसे मुक्कमलतासीर इनकी मिलती जरूर ज़िन्दगी मेंलेकिन ज़िन्दगी इनकी मोहताज़ नहीं चलें हम ज़माने के साथ कभीया कभी ज़माना चले साथ हमारेज़िन्दगी में इसका अहम इतना नहींजितना है हमारी ज़िंदगी का हमारे लिए सोचते हैं अक्सर हालात यूँ न होतेकी अभी आसार भी ऐसे …