शिव से पूछो तुम क्या है मुझमें
क्यों आज शिव है मुझमें
हाला मैं क्या पी आया जग की
क्या बन बैठा हूँ शिव की प्रतिमा
तन्द्रा ना करो भंग मेरी तुम
ना करो मुझसे अब कोई छल
कि कब मैं शिव बन जाऊं
कि कब मुझमें बस जाए शिव
हाला मैं बहुत पी चुका जीवन में
बहुत सह चूका मैं जीवन मंथन
नहीं अब स्वयं पर वश मेरा
कि शिवधुनि रमा चूका हूँ मैं अब
बहुत छला है मुझे मेरे जीवन ने
बहुत सी हाला भी मैं पी चुका
कि अब और नहीं वश स्वयं पर मेरा
नहीं ज्ञात कब हो मेरे तांडव से सवेरा
शिव से पूछो क्या है मुझमें
क्यों बसा है आज शिव मुझमें
क्यों प्रतिमा बन बैठा हूँ मैं शिव की
क्यों प्रचंड है महिमा आज तांडव की