मुस्कुराहट से मेरी हाल-ऐ-दिल बयान नहीं होता
नज़रों से मेरी मेरे ईमान का गुमान नहीं होता
सोचते हो तुम गर मुझे जानते हो
तो मेरे दीदार से मेरे दिमाग का इल्म नहीं होता
तो मेरे दीदार से मेरे दिमाग का इल्म नहीं होता
कहीं गर तुम मेरे आब -ऐ-तल्ख़ देखोगे
तो कहीं मेरे दर्द का हिसाब मत लेना
कि मेरे चेहरे के इंतेखाब-ऐ-आलम से
मेरी हार का हिसाब मत लेना
मुस्कराहट से कभी हाल-ऐ-दिल बयां नहीं करता
मैं अपनी जुबां से कभी दर्द बयाँ नहीं करता
गर कही तुम चले भी गए दर्द दे कर
तो याद रखना मैं बद्दुआ किसी को नहीं देता
मेरे अक्स में गर कभी झांकोगे
तो खुदा का नूर तुम्हें नज़र आएगा
लेकिन गर कभी मेरी आँखों में देखोगे
तो मंज़र-ऐ-तूफ़ां नज़र आएगा
नज़ाकत मैं कब की पैमानों में डूबा आया हूँ
खुद से मैं कब का खुद को निजात आया हूँ
कि अब तो मेरा खुदा भी मुझसे डरता है
जब मुझमें मेरा शैंतां नज़र आता है
गर तुम्हें अब भी गुमान है अपने इल्म का
तो एक बार फ़िज़ाओं से पूछ कर देखो
कि अब तो मेरा खुदा भी मुझसे डरता है
जब मुझमें मेरा शैंतां नज़र आता है