दम्भ में चूर ईश्वर

दम्भ प्राकृतिक है या प्रकृति
कैसे करें है कैसी यह शक्ति
विचार विमर्श भी किससे करें
अपनी व्यथा कहाँ धरें
हर और यहाँ दम्भ है फैला
जीवन को क़र गया मटमैला

जिससे पूछो दम्भ की औषधि
जताता है वही दम्भ की विधि
पंहुचा ईश्वर के भी द्वार
की प्रार्थना कर दम्भ का संहार
दम्भ से भरा ईश्वर भी बोला
मानव है तू बहुत ही भोला

मन में सोचा कैसी है यह ठिठोली
दम्भ में चूर ईश्वर की भी बोली
ईश्वर फिर बोला है मानव
दम्भ ही तो है सृष्टि में दानव
दानव का कर दूँ यदि मैं संहार
कौन करेगा इस जग में मेरा प्रचार

पा कर ईश्वर को भी दम्भ में चूर
छोड़ आया मैं आस अपनी दूर
दम्भ में ही जीवन है मरण
दम्भ में ही ईश्वर का भी है स्मरण
दम्भ में जब है ईश्वर
तब कैसे होगा दम्भ का संहार

दम्भ प्राकृतिक है या प्रकृति
कैसे करें है कैसी यह शक्ति
हर और यहाँ दम्भ है फैला
जीवन को क़र गया मटमैला
दम्भ में चूर ईश्वर भी बोला
मानव है तू बहुत ही भोला

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