Month: December 2017

रूह के ज़ख़्म

कहीं तो आज किसी की याद आएगी छुपते छुपाते कहीं बात निकल आएगी कहीं फ़िज़ाएँ भी गुनगुनाएँगीं यादों की पुरानी परत फिर निकल आएगी निशाँ ज़ख़्मों के कैसे अब छुपाएँगे कि पुराने वक़्त की याद कैसे दबाएँगे  दबे हुए रूह के ज़ख़्म फिर तड़पाएँगे परतों से निकल नासूर बन जाएँगे कहीं तो आज किसी की …

रिश्तों का आलम

फ़िज़ाओं के रूख से आज रूह मेरी काँप उठी है कि तनहाइयों के साये में मेरी ज़िंदगी बसर करती है जिनको अपना समझा था वे बेग़ाने हो गए जिनके साथ का आसरा था वही तूफ़ान में छोड़ चले गए की अब तो आलम है कुछ ऐसा कि रिश्तों से ही डर लगता है ढूँढते थे …