रूह के ज़ख़्म

कहीं तो आज किसी की याद आएगी
छुपते छुपाते कहीं बात निकल आएगी
कहीं फ़िज़ाएँ भी गुनगुनाएँगीं
यादों की पुरानी परत फिर निकल आएगी

निशाँ ज़ख़्मों के कैसे अब छुपाएँगे
कि पुराने वक़्त की याद कैसे दबाएँगे 
दबे हुए रूह के ज़ख़्म फिर तड़पाएँगे
परतों से निकल नासूर बन जाएँगे

कहीं तो आज किसी की याद आएगी
दबे हुए रूह के ज़ख़्म फिर उभारेगी
तसव्वूर में दबे निशाँ भी अब नज़र आएँगे
जब यादों की परत निकाले जाएँगे 

नासूर फिर एक बार ज़ख़्म बन जाएँगे
जब भीड़ की तन्हाई में हम गुनगुनाएँगे
फ़िज़ाओं को कैसे रुख़सत कर पाएँगे
जब राहों में उनकी यादों से मिलते जाएँगे!!

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