Month: February 2018

जीवन द्वंद्व में लीन

जीवन द्वंद्व में लीन है मानव  ढूंढ रहा जग में स्वयं को  नहीं कोई ठोर इसका ना दिखाना  दूर है छोर, ढूंढने का है दिखावा  नहीं किसी को सुध है किसी की  अपने ही जीवन में व्यस्त है हर कोई  ढूंढ रहा है हर कोई स्वयं को  छवि से भी अपनी डरता है हर कोई  …

अभी कुछ दिन ही तो बीते हैं

निगाहों में तेरी ज़िंदगी अपनी ढूँढते है जीने के लिए तेरी बाहों का आसरा चाहते हैं दिन कुछ ही गुज़रे है दूर तुझसे फिर भी ना जाने एक अरसा क्यूँ बिता लगता है  ज़ुस्तज़ु है मेरी या है कोई आरज़ू कि आँख भी खुले तो तेरी बाहों में  और कभी मौत भी आए तो  आसरा …

मर्यादा में जीना सीखो

आनंदन नहीं दिखता इनको जो अफ़ज़ल पर रोए हैं राम इनको काल्पनिक दिखता बाबर इनका महकाय है रामायण इनकी है कहानी मात्र  किंतु शूर्पणखा एक किरदार है महिसासुर इनको खुद्दार दिखता दुर्गा नाम से इनका क्या पर्याय है राष्ट्र विरोधी कथनो और नारों में  दिखती इन्हें अपनी स्वतंत्रता है वन्दे मातरम के उच्च स्वर में …

मात-पिता

नैनो की भाषा ना समझ पाए  ना समझ पाए उनके कुछ संकेत अधरों से वो कुछ बोल ना पाए हृदय को हमारे छू ना पाए बढ़े थे जिस डगर पर साथ उनके उसपर झुककर उन्हे संभाल ना पाए एक छोर तक साथ चले वो हमारे उसके आगे हम उन्हें थाम ना पाए कुछ भाषा ना …