मर्यादा में जीना सीखो

आनंदन नहीं दिखता इनको
जो अफ़ज़ल पर रोए हैं
राम इनको काल्पनिक दिखता
बाबर इनका महकाय है

रामायण इनकी है कहानी मात्र 
किंतु शूर्पणखा एक किरदार है
महिसासुर इनको खुद्दार दिखता
दुर्गा नाम से इनका क्या पर्याय है

राष्ट्र विरोधी कथनो और नारों में 
दिखती इन्हें अपनी स्वतंत्रता है
वन्दे मातरम के उच्च स्वर में
गूँजती इनकी असहिष्णुता है 

कलबुर्गी की हत्या पर सरकार नपुंसक थी 
किंतु संतोष की हत्या पर बस चुप्पी है
घोड़े, कुत्ते का जीवन उनको जो प्यारा है 
 बिन गौ माँस का खाना उनका अधूरा है

होली पर बहते पानी पर रोते हैं
दिवाली की आतिशबाज़ी से डरते हैं
बात वहीं हो जब रोमन नव वर्ष की 
बाँछे इनकी खिल खिल उठती हैं

भूल गए हैं ये आज़ाद और भगत सिंह को
कसाब इनका बेटा ही लगता है
लाखों प्रकरण विचाराधीन है न्यायपालिका में
फिरते हैं अर्धरात्रि में आतंकी को क्षमा दिलाने

आज फिर एक बार राष्ट्र ने पुकारा है
मर्यादा पुरुषोत्तम ने नाम से हुंकारा है
तज अपनी मदभरी चाल को 
मर्यादा में फिर जीना सीखो



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