अंतर्मन की ज्वाला

अंतर्मन में बसी है जो ज्वाला
ढूंढ रही है बस एक मुख
इतने वर्षों जो पी है हाला
बन रही है अनंत दुःख
नागपाश नहीं कंठ पर ऐसी
जो बाँध दे इस जीवन हाला को
प्रज्वलित ह्रदय में है ज्वाला ऐसी
बना दे जो हाला अमृत को
ज्वाला जब आती है जिव्हा पर
अंगारे ही बरसाती है
हाला से प्रज्वलित है ज्वाला
जिसमें पुष्प नहीं खिलते है
अंगारो में जब बसा हो जीवन
ज्वाला की पीते हो हाला
अमृत कलश नहीं बनता जीवन
जब ह्रदय में प्रज्वलित हो ज्वाला
ऐसे बनते है मानव से ज्वालामुखी
की आधर पर जिनके बसते अंगारे
ह्रदय में जब प्रज्वलित हो ज्वाला
पुष्पों की बहार नहीं लाती जिव्हा!!

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