धरा की धरोहर सा संजोया जिसे
अंतर्मन में बसा आत्मा बनाया जिसे
स्वयं को छोड़ अपनाया जिसे
तुम्ही हो अर्धांगिनी मैंने बनाया जिसे
परमात्मा के परोपकार से जो मिली
धर्मात्मा के आशीर्वाद से जो मिली
अग्नि के साक्ष्य में जो मिली
वही हो तुम तो मेरी जीवनसंगिनी बनी
कहीं तुम्हारी सफलता ही है लक्ष्य मेरा
जीवन द्वंद्व तो मात्र है समय का फेरा
नहीं बनाने दूंगा मष्तिस्क की चिंताओं का डेरा
सफल हो तुम यही ध्येय है मेरा
चिंतन मनन में तो तुम मेरी संगिनी
तुम्ही हो जिससे है मेरी जीवन रागिनी
कहीं दूर स्वप्न सा जो है दिखता
वही है द्वार जिसमें मेरा विश्व है बसता
संग मेरे ही तुम चलो सदा
पथ कठिन होगा बनो तुम सहारा
संग चलते हुए बल ही मिलेगा
स्वप्न संग चलकर ही साकार होगा
अंतर्मन में बसा आत्मा बनाया जिसे
स्वयं को छोड़ अपनाया जिसे
अग्नि के साक्ष्य में जो मिली
वही हो तुम तो मेरी जीवनसंगिनी बनी