पथभ्रष्ट

भ्रष्ट तुम मुझे कहते हो 
अपनी लीला जब करते हो 
क्यों भूल जाते हो अपनी करनी 
जब भूखों को रोटी नहीं देते थे 

जब देश में था चोरो का राज 
जब कर्मचारी नहीं करते थे काज 
कर्जे में डूबा था हर कण 
देश खो रहा था प्रगति का रण 

भ्रष्ट तुम मुझे कहते हो आज 
जब सही हो रहे हैं सारे काज 
जब देश कर रहा है प्रग्रति 
तुम कर रहे हो शब्दों की अति 

भ्रष्ट तुम मुझे जो कहते हो 
अपने अतीत में नहीं देखते हो
भ्रष्ट के साथ पथभ्रष्ट थे
तुम विद्वता के धन से वंचित थे तुम 

भ्रष्ट मैं हो सकता हूँ एक क्षण
पर पथभ्रष्ट नहीं मेरा एक कण
नहीं भ्रष्ट है मेरा अंतर्मन मेरी मति
और देश मेरा कर रहा प्रगति|| 

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