निशा के प्रथम प्रहर से प्रतिक्षित हैं
किंतु निद्रा हमें अपने आलिंगन में लेती नहीं
कविता की पंक्तियों में जब खोना चाहें
तब कविता की कोई पंक्ति कलम पर आती नहीं
किससे कहें और क्या कहें
कि अब तो शब्दावली भी साथ निभाती नहीं
निद्रालिंगन में जितना हम जाना चाहते हैं
निद्रा हमें अपने आलिंगन में लेती नहीं
ना जाने क्योंकर अब निद्रा भी
स्वप्न नगरी में हमें आने देना चाहती नहीं
उचित नहीं यह व्यवहार निद्रा का
कि अब मश्तिष्क से शब्दावली साथ निभाती नहीं
कैसे कहें और कैसे मनाएँ निद्रा को
कि कोई राह तक रहा है हमारी कहीं
सवेरे के सूरज की किरणों के साथ
कोई बाट जोह रहा है हमारी कहीं
छोटी सी प्यारी नन्हीं सी एक परी है मेरी
जो कर रही घर पर प्रतीक्षा मेरी
बस घर जा कर उसको आलिंगन में ले सकूँ
है निद्रा इस लिए तू अभी मुझे आलिंगन में ले ले
निशा के प्रथम प्रहर से प्रतिक्षित हूँ मैं
कि निद्रा अब मुझे आलिंगन में ले ले
मेरी नन्ही से परी बाट जोह रही मेरी
कर रही मेरे आलिंगन की वो प्रतिक्षा
अब तो कविता की पंक्तियाँ भी पूर्ण हो चली
अब तो ले चल मुझे स्वप्नों की गली।।