राजनीति का अधर्म

राजनीति का अधर्म है यह 
या है अधर्म की राजनीति 
नैतिकता जहां लगी दांव पर 
व्यक्तित्व का जहां हुआ संहार 

आलोचना जो करनी थी नेता की 
कर बैठे नीतियों का मोल 
व्यक्ति विशेष पर करनी थी टिप्पणी 
कर बैठे राष्ट्र का अपमान 

इतना भी क्या घमंड वर्षों का 
इतना भी क्या दम्भ पैसों का 
इतना भी क्या मोह सत्ता का 
इतना भी क्या घमंड पद का 

राजनैतिक अधर्म नहीं तो क्या है
कि करते हो तुम राजद्रोह 
अधर्मी राजनीति नहीं तो क्या है 
कि करते हो तुम सत्ता से मोह 

राजनीति का धर्म यदि है
कोई तो है राष्ट्र की सेवा 
नहीं राजनीति में ऐसा कोई  मोह 
जो खिलाए तुम्हें केवल मेवा

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