कुपित कुटिल भगवान

जीवन की कुछ अपनी ही गाथा है
इसकी पहेलियाँ सागरमाथा है
तुम चाहे जितना भी जतन करो
यह कहेगा छलनी से जल भरो

जीवन की डोर है भगवान के हाथों में
कहते फिर भी है कि भाग्य है कर्मों में
फिर क्यों गीता के अध्याय में क्यों है
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन

हर समय जीवन ज्ञान क्यों है देता
कलयुग है, नहीं है यह युग त्रेता
जीवन में कर्म जब सभी हैं करते
भगवान फिर कुछ की झोली ही क्यों भरते

जीवन की यह पहेली है बहुत जटिल
क्या कलयुग में भगवान भी हो गया कुटिल
क्या वह भी अब हो चला है भ्रस्ट
क्या उसका मन्त्र है जो चढ़ाएगा वही पाएगा

अजब पहेली है गजब की है गाथा
सुलझाना इसे है जैसे चढ़ना हो सागरमाथा
जतन लाख कर लो फिर भी उसे नहीं मानना
कुपित कुटिल भगवान से है अब तुम्हारा सामना

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