मैं सनातन हूँ है मेरी कथा निराली
ज्ञान से भरा हूँ लेकिन ख़ाली मेरी प्याली
जिसने जब चाहा मुझे निचोड़ा है
जब जिसका मन चाहा मुझे तोड़ा है
मेरे अपने बैठे दर्शक दीर्घा में
मूक मौन से घिरे इस करतब में
चिर निद्रा में सो गये थे अनजाने
फिर आया मोदी उन्हें जगाने
झँझोड़ा जब मोदी ने उनको
तानाशाह की पदवी दे दी उसको
जनसेवक निकल चला है सनातन के पथ पर
चोट खा कर भी ना बैठा अपने घर पर
जागो उठो ही सनातन के वीरों
इस धरा के दुश्मनों को चीरो
दे साथ मोदी का तुम बढ़े चलो
प्रजातंत्र के योद्धा बन तुम बढ़े चलो
मत करो मेरा तुम यूँ तिरस्कार
कहीं खो ना जाओ तुम बन निराकार
पहले भी बहुत आहत हुआ हूँ मैं
इसलिए आख़िरी आशा करता हूँ मैं
निकल अपने घर से बाहर अब
दो साथ मोदी का तुम सब