Month: September 2024

अजनबी तराने

कहीं तुम जब दिखे थे, थे एक अजनबीकहीं तुम जब मिले थे, थे एक अजनबीफिर कहीं तुमसे हुई पहली मुलाक़ातथी वो एक अजीब सी रात हवा में थी तुम्हारी ही अपनी ख़ुशबूतारों का नहीं था तब ख़ुद पर क़ाबूफिर ना जाने कहाँ से शुरू हुए तरानेयादों में भी लगे हम उन्हें अपनाने

डियर ज़िन्दगी

डियर ज़िन्दगी तू बेशक हमें नचालेकिन कुछ गाने तो अच्छे बजाकि तरानों में तेरे हम खो जाएँबेशक हम मदहोश हो जाएँ!! ज़िंदगी बोली फिर हमसेतुम मेरी धुन पर नाचते हो कबसेगानों की तो यूँ फ़रमाइश करते होकभी उनमें डूबी धुन भी सुनते हो? इन तरानों की तुम बात भी मत करनातुमको तो बस आता है …

कभी आइये मेरे गाँव में

शोर पायल की झंकार काहाथों में खनकती चूड़ियों का साँसों में महकते गजरे का कहीं आपको ढूँढना है तो आइये कभी मेरे गाँव में  खिला बचपन जिन कलियों मेंलड़कपन बीता जिन गलियों में खेले लुकाछिपी जिन दालानों में मिले कंचे जहां खदानों से देखना है तो आइए मेरे गाँव में  वो खिलखिलाता सा सूरज वो चहचहाते से पंछीवो महकता सा बाग़ानवो गदराये …