विरह एक अग्निपथ

कारे बदरा की चादर है ये सूनापन
मन कहे, “कहाँ हो मेरे प्रिय सजन?”
चांदनी भी ठहर-ठहर के पूछे,
क्या ये विरह है प्रेम का सच्चा दर्पण?

नयन बिछ बिछ पथ को ताकें
यादों की परछाईयों में भटकें
हर आहट में पी का ही नाम सुनें
हर सन्नाटे में धड़कनों को ढूंढें

हवा की सरगम में तेरी सूरत
सपनों में धुंधली सी तेरी मुरत
दिल के आंगन में टीस उभर छाई
पी से विरह की दे रही दुहाई

विरह की वेदना, तपता सवेरा
प्रेम का यह रूप भी गहरा
संबंधों की अग्नि में तपकर जो चमके
वो ही प्रेम अमर बनके दमके

तो आओ, इस विरह को भी अपनाएं
प्रेम के सत्य को इसमें पाएँ
तेरी प्रतीक्षा में हर पल जी लूं
और फिर मिलन को अमर कर दूं

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