लोकसभा के मंच पर आया
नेहरू का वारिस, सबका साया
आवाज़ में जोश, मगर बात अधूरी
कभी पप्पू, कभी “युवराज” की मज़बूरी
काग़ज़ लहराए, मुद्दे उठाए
पर तर्कों में अक्सर गड्ढे पाए
माइक बंद हो, या हंसी छूट जाए
राहुल बाबा फिर भी मुस्काए
कभी आलू से सोना बनाएंगे
कभी “दंडवत” राजनीति सिखाएंगे
चायवाले पर तंज कस जाए
पर जुमलों से खुद न बच पाए
कभी किसानों के “आंसू” पोंछें
कभी विरोधियों के तीरों को रोके
भाषण में कविता, पर मंशा ग़ायब
नेता बने, पर नीति पर सन्नाटा कायम
युवाओं का नेता, अनुभव से खाली
पार्टी संभाले, मगर खुद सवालों वाली
“भारत जोड़ो” का नारा लगाए
पर संसद में खुद को जोड़ न पाए
फिर भी, उम्मीदें उन पर टिकी हैं
क्योंकि लोकतंत्र की यही रीति है
राहुल का संघर्ष, जनता का खेल
हंसते-हंसते, कहानी कहता ये मेल