आज याद आता है वो गुजरा ज़माना
बचपन का हर वो तराना
था कुछ और ही वक़्त वो
जब दूरदर्शन शुरू होता था शाम को
क्या वक़्त था वो 80s 90s का
जब एक घर में चार नहीं
चार मोहल्लो में एक टीवी होता था
याद आता है आज वो ज़माना…बचपन का हर तराना
वो डाकिये का घर घर डाक बाटना
वो केयर ऑफ नंबर पर कॉल आना
दोस्तों के साथ बैठ मोहल्ले में
क्रिकेट के शॉट्स पर चीखना चिल्लाना
याद आता है आज वो ज़माना
अपने लड़कपन का हर तराना
वक़्त वो जब मिलती मुश्किल से जीन्स थी
पहन कर जिसको लगता जहाँ जेब में था
क्या दिन थे वो क्या था वो ज़माना
ना था मोबाइल ना सोशिअल नेटवर्क
बजती थी बस सीटियाँ थिएटर में
ना कभी थी सुनी घंटी किसी के मोबाइल की
याद आता है आज वो ज़माना
बीते वक़्त हर वो तराना
जब लगा गले दोस्त देते थे बधाई
ना की आज की तरह फेसबुक पर
याद आता है आज वो ज़माना
बीते वक़्त का हर वो तराना
चाहता है आज भी दिल गुनगुनाना
लेकिन बदल गया है ज़िन्दगी का अफसाना||