विषधर

पिला उसे शब्दों का हलाहल 
कहते हो तुम उसको विषधर
कर उसपर सह्ब्दों के वार
कहते हो तुम उसको विषधर
नहीं उसमें उतना विष 
जितना हलाहल उसने पिया
कहते क्यों हो उसको विषधर
क्यों पकड़ते हो उसका अधर
धीरज नहीं गर तुम रखते
वश में गर खुद के नहीं रह सकते
तो क्यों चलते हो शब्दों के बाण
क्यों हारते हो तुम उसके प्राण
छुप कर वार जो तुम करते हो
हलाहल के वार जो करते हो
उसका ही परिणाम है वो
जिसको अब विषधर कहते हो
ना चलाओ तुम अपने अस्त्र
वश में रखो तुम अपने शष्त्र
देखोगे उसका फिर तुम रूप वही
विषधर जिसमें तुमने बसाया!!

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