चाहत

पहली तारीख को हुई पहली वो मुलाक़ात
दिल में बहार आई कि अभी जवान होगी रात
फिलहाल तो दिल कर रहा है मेरा इंतज़ार
कि कब आएँगे बनके वो मेरे जाने बहार
कैसी है ये शिद्दत कि कब बीतेंगी ये घड़ियाँ
जाने कब आएगी वो तोड़ ज़माने की कड़ियाँ
जाने कब वो थामेगी मेरा हाथ
जाने कब आएगी रुत जब होगी वो मेरे साथ
मंज़र अब हुआ जाता है कुछ धुंधला
लगता है जैसे किस्मत ने रुख है बदला
दुआ बस अब यही करतें हैं
साथ दे किस्मत ना वो धोखा दे
गम-ऐ-उल्फत से हम जुदा हुआ चाहते हैं
उनके आगोश में ता ज़िन्दगी जीना चाहते हैं
उनकी मुस्कराहट पर हम फ़िदा रहना चाहते हैं
अब हम उनके हाथ थाम ही जीना चाहते हैं||

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *