मानव जीवन का प्रश्न

दिवस के प्रथम प्रहार में

सूरज अंधियारा हरता है
पर मानव के जीवन में 
हर क्षण मानव ही मरता है
भोर भये आँगन में 
पंछियों का स्वर घुलता है
पर मानव के जीवन में 
हर क्षण कोलाहल ही गूंजता है
ब्रह्म मुहूर्त से गोधुली वेला तक
मानव के कर्म का चक्र चलता है
पर मानव के जीवन में 
हर क्षण द्वंद्व युध्ध मचता है
जीवन के हर क्षण हर मोड पर
मानव अग्नि परीक्षा देता है 
ना चाह कर भी मानव 
जीवन में घुटने टेकता है
क्या यही देवों की श्रृष्टि है 
क्या यही देवों की है मंशा
क्या यही मानव जीवन का सत्कार है
जिसमे उसके अंतर्मन की चीत्कार है??

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *