श्वेत वर्ण – शान्ति या शोक

श्वेत वर्ण से ढँकी ये वादी, श्वेत तो  शान्ति का है प्रतीक 
आज ना जाने ये श्वेत दे रहा क्यों शोक सन्देश
लहुलुहान है ये धरती आज, सहमा है यहाँ जन जन 
सुनाई देती है हर ओर सिर्फ एक ही चिंघाड – रण रण रण 
देखता हूँ जब में भारत के मुकुट का ये हाल
सुनता हूँ हर और में नाच रहे नरमुंड और कंकाल
चीथड़े हाडमांस के नज़र आते हैं 
वीभत्स है धारा का श्रृंगार
जाने क्यों ये श्वेत धरा दे रही शोक सन्देश 
क्यों है ये आतंक यहाँ, किसका है ये अभिशाप
कौन है ये अहंकारी जो 
करा रहा इस पावन धरा को आदम का रक्तपान
श्वेत वर्ण से ढँकी ये वादी, लगती सूनी जैसे विधवा की मांग
नरसंहार कर रहा धरती की कोख उजाड
लहुलुहान है धरा आज, सहमा है कण कण 
सुनाई देती है हर ओर सिर्फ रण की ही चिंघाड 

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