हमारी मोहब्बत को जो अब्तर किये जाते थे
आब-ऐ-चश्म हमें जो पिलाए जाते थे
ऐ खुदा हमें आज वो काफिर कहते हैं
आशियाना जो दिल को बनाया चाहते थे
हमारे खून-ऐ- रोश्नाए से कलाम लिखा चाहते थे
अज़ाब में हमारे जो अश्किया बने से रहते थे
अख्ज़ वो हैं जो आज हमें काफिर कहें जाते हैं
अरमानो से जिनकी निकली हमारे इश्क की मैय्यत
मुलाक़ात जिनसे आखरी बनी हमारे इश्क की मैय्यत
अफ़सोस जिन्हें ना हुआ कि निकली हमारे इश्क की मैय्यत
अल्फाज़ उनके हमें काफिर कहे जाते हैं
काफिर गर उनकी नज़रों में हम निकले
गर उनके ख्यालों से ये अल्फाज़ निकले
कि मोहब्बत के कलाम गर यूँ बदले
ऐ खुदा इस दुनिया के हम काफिर ही भले
गर मोहब्बत कर हमें दोजख मिले
गर कर वफ़ा हमें तन्हाईमिले
ना पनाह ना आशियाँ कहीं मिले
तो ऐ खुदा इस दुनिया के हम काफिर ही भले
हमारे अरमानों का जो क़त्ल किये जाते थे
अज़ाब में हमारे जो अश्किया बने से रहते थे
गर उनके ख्यालों से ये अल्फाज़ निकले
तो ऐ खुदा इस दुनिया के हम काफिर ही भले