जीवन नवरस

जीवन  नवरस को गूंथ कविता का एक प्रयास –

रणक्षेत्र में जा वीर बना मैं 
देखा द्वेष का रूप वीभत्स
मौत का देख रोद्र तांडव
पीड़ा से हुआ ह्रदय करुण
हास्य से होकर विमुख
भक्ति का अपनाया रुख
अदभुत अनुभूति हुई तब
श्रृंगार से मिला वात्सल्य सुख जब

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