चुनिन्दा दर्द भरे शेर

तूफां में कश्ती छोड़ किनारों का आसरा ना ढूंढ
लड़ मजधार के तूफानों से कश्ती किनारे पर मोड

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साथ गर तू देगा खुदका तो खुदा तेरे साथ होगा
मजधार के भंवर से गर लड़ेगा तो किनारा तेरे पास होगा

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ऐसे अल्फाज़ ना कहो कि अभी मैं जिंदा हूँ 
तेरे दिल में बसने का ख्वाहिशमंद खुदा का बंदा हूँ
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 नगमें उनकी बेफवाई के लिख रहा हूँ आज
कि दर्द-ऐ-दिल से तन्हाई  को रुसवा कर रहा हूँ
ना जाने कि कदर ये नगमें सजेंगे सुर-ओ-ताल पर
ना जाने हम क्या करेंगे तन्हाई  के आगोश में 
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हमें संगदिल, बेदर्द कहे जाता है आज ये ज़माना
अरे कोई उनकी और तो देखो जो हमारा दिल तोड़ बैठे हैं
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मुड  कर उन्होंने देखा कुछ इस कदर हमें 
कि होंश फाक्ता हुए और हम दीवाने बन गए
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दफ्न कर गए हो आज हमारी आरजुओं को 
और बदले में दे गए हो एक ग़मगीन पल हमें
ना चाह कर भी अब मुस्कुराना पड़ता है कुछ इस कदर
कि ज़माने को ये इल्म ना हो की हम गुमशुदा हैं 
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अल्फाज निकले हैं आज हमारे बेज़ार दिल से उनके लिए
कि ए खुदा रखना तू उन्हें बेगार इस ज़माने की रुसवाई से
क्या हुआ जो वो हमारी मोहब्बत का पैगाम ना पढ़ सके
उन्हें तू उनकी मोहब्बत के अंजाम तक जरूर ले जा



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