चिलमन

कुछ यूँ ही बदला है खयालों में
कि आज चाँद भी छुपा है बादलों में
इन्तेज़ार था जिनके आने का
ना इल्म हुआ हमें उनके आहट का

यूँ  छुपे थे वो उस चिलमन में
जैसे आफताब छुपा हो पलकों में
ना हमारी नज़र उस ओर उठी
ना उनके कदम हमारी ओर बढे

ना जानते थे हाल-ऐ-दिल उनका
ना कभी जान पाते एहसासउनका
गर उन्होंने हमारा हाथ ना थामा होता
गर कभी हम उन्हें देख ना पाते

दूरियां फिर भी सिमट ना पाई
तकाजा-ऐ-महफ़िल हम ना समझ पाए
ना चाह कर भी ऐ खुदा
उनकी डोली को देकर कान्धा आए

कि अब सोचता हूँ  हर सूं ऐ खुदा
गर मांगू तुझसे तो क्या मांगू
ना तू उनको मेरा अक्स बना सका
ना तू उस चिलमन की दूरी मिटा सका||

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