यादें

यादों की कश्ती में सवार जब हम बातों की पतवार से सफर की कगार पर पहुंचते हैं तो कुछ नगमें यूँ बनते हैं जैसे कुछ लम्हों पहले हमारी एक शायरा दोस्त से बातें करते हुए बने| जी हाँ बात बात में उन्होंने कुछ इस तरह कहा –

अब उदास होना भी अच्छा लगता है
किसी का पास ना होना भी अच्छा लगता है
मैं दूर रह कर भी किसी की यादों में हूँ
ये एहसास होना भी अच्छा लगता है

अब हम ठहरे कुछ इस कदर के शायर कि हमारे लाफ्जात भी थम ना सके और हमने कुछ इस कदर कहा –

कि इस एहसास में मैं अपनी जिंदगी गुजार दूं
तेरी यादों के साये में अपनी उम्र गुजार दूं
साथ तेरा गर नसीब ना हुआ तो क्या
तेरे साये में मैं अपना अक्स गुजार दूं
सोचा न था कि कभी तुझसे यूँ गुफ्तगूं होगी
तन्हाइयों में तेरी यादें साथ होगी
आज तेरे इन लफ़्ज़ों मं रात तन्हां कर दूं
तेरी इन बाहों में रूहानी सफर तय कर दूं

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