का कहूँ छवि तिहारी,
जित देखूं उत् दीखेई
जो मैं सोचूं नैना बंद करके,
मन वर जोत जले
निद्रागोश में, स्वप्न में भी,
चहुँ और जो दीप जले
ना दिन में चेइना न रात में चेइना
बस चहुँ और तू ही तू दीखेई
बस कर नखरा और न कर ठिठोली
आ बना मेरे अंगना कि तू रंगोली
भर तू रंग मेरे जीवन में
हो संग तेरे जीवन का खेला
हो संग तेरे जीवन का ये मेला
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