क्या कहें और कैसे कहें

क्या कहें और कैसे कहें
कि कहीं छुपा एक राज है
कहीं ज़ुबान पर आ गया
तो खुदा समझ मेरे जज़्बात हैं
कहीं किसी के नूर में
छुपे हुए कुछ अल्फ़ाज़ हैं
कहीं हलक से सरक गए
तो खुदा समझ मेरे हालत हैं
कि तकल्लुफ़ ना करना
मेरी रूह के दीदार का
कहीं दीदार गर हो भी जाए
तो आन-से-तल्ख़ समेट लेना
अब फ़लसफ़ा क्या कहें
यही सच है ज़िंदगी का
आह भी गर उठ जाए ज़मीर की
खुदा से रूबरू हो ही लेना।

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