कहीं तुम जब दिखे थे, थे एक अजनबी
कहीं तुम जब मिले थे, थे एक अजनबी
फिर कहीं तुमसे हुई पहली मुलाक़ात
थी वो एक अजीब सी रात
हवा में थी तुम्हारी ही अपनी ख़ुशबू
तारों का नहीं था तब ख़ुद पर क़ाबू
फिर ना जाने कहाँ से शुरू हुए तराने
यादों में भी लगे हम उन्हें अपनाने