अधूरी कविता

अधूरी भ्रान्ति अधूरे क्षण अधूरे हैं जहाँ सारे प्रण अधूरी शांति अधूरे रण अधूरे हैं यहाँ सत्ता के कण राष्ट्र ये मेरा आज अधुरा है सत्ता के भूखों से भरा है जीवन यहाँ आज निर्बल है जनता की सोच भी दुर्बल है अधूरी सोच नेताओं की अधूरी होड़ प्रशाशन की अधुरा यहाँ हर कृत्य है …

राजनीति का खेला

देखो मेरे देश में राजनीति का खेला प्रजातंत्र में लगता है राजतंत्र का मेला यहाँ नहीं है कोई किसी का, ना गुरु ना चेला बस सत्ता की दौड़ की यहाँ होती हमेशा बेला जनता चाहे भूखो मरे, या जले उसकी चिता निताओं को केवल रहती है अपनी गद्दी की चिंता नहीं यहाँ आदमी आदमी को …

निष्पक्ष जांच

घोटालों के इस देश में  हर कोई करता घोटाले है जब सामने मामला आता है हम एक ही आलाप सुनते हैं इसकी निष्पक्ष जांच की जावेगी चीरहरण जब यहाँ होता अबला का सरकार फिर वही बात दोहराती जनता के आक्रोश को दबाने को  फिर वही आलाप लगाती इसकी निष्पक्ष जांच की जावेगी बलात्कार यहाँ होता …

सैनिक की चेतावनी

ना समझ हमारी सहनशीलता को कायरता हम तुझे छठी का दूध याद दिला सकते हैं ना हमें तू बर्बरता का रूप इतना दिखा हम आज भी तेरे ह्रदय से लहू निकाल सकते हैं जिनकी तुम भीख पर पलते हो  उनकी वाणी हम मान नहीं सकते हमारी प्रभुसत्ता को ना दो चुनौती  ना बनाओ हमें तुम …

मेरे दुश्मन

मैं एक सैनिक हूँ, करता हूँ देश रक्षा देश सेवा के लिए रहता हूँ मैं तत्पर जान न्योछावर मेरी देश हित में कभी शूरवीर तो कभी शहीद हूँ मैं करता हर पल मैं अपना कर्म हूँ दुश्मन का भी करता आदर हूँ पर ललकार नहीं मुझे उसकी सहन प्रज्वल होती उससे हृदयाग्नि प्रबल उत्तर है …

सिर्फ तुम

ज़िन्दगी में देखी तिजारत बहुत बहुत देखी बेवफाई ना कोई उम्मीद थी कहीं ना था हमारा कोई सपना दर दिन तरसते थे  खोजते थे हम अपनी ज़िंदगी ना कोई और हसरत थी ना थी उम्मीद-ऐ-वफ़ा कोई दिन बीते, बीते महीनो साल ना हुई ज़िंदगी फिर भी बहाल भटकते रहे दर दर हम यूँही ना हुई …

लम्हात

आने से उनके कुछ लम्हे बदल से जाते हैं उन लम्हों में हमारी ज़िंदगी बदल सी जाती है चंद उन लम्हों की खातिर जीते हैं  कि उन लम्हों में हमारी कायनात बदल जाती है  जिन लम्हों में उनका साया नसीब होता है  उन लम्हों में हमारी तकदीर बदल जाती है  हसीं हर जर्रा हर खिजाब …

चंद् मुक्तक – २

देश के नेता जब हो चोर तो कैसे ना हो संसद में शोर हर पल लूटें जो देश की अस्मत तो कैसे जागे नागरिकों की किस्मत ======================== जहाँ न्यायपालिका करे उनकी रक्षा जहां न्यायाधीश मांगे उनसे भीक्षा जहाँ मिले उनसे गुंडों को दीक्षा कैसे बने वहां नागरिकों की आकांक्षा ======================== जहाँ देश के नेता करें …