दम्भ में चूर ईश्वर

दम्भ प्राकृतिक है या प्रकृतिकैसे करें है कैसी यह शक्तिविचार विमर्श भी किससे करेंअपनी व्यथा कहाँ धरेंहर और यहाँ दम्भ है फैलाजीवन को क़र गया मटमैला जिससे पूछो दम्भ की औषधिजताता है वही दम्भ की विधिपंहुचा ईश्वर के भी द्वारकी प्रार्थना कर दम्भ का संहारदम्भ से भरा ईश्वर भी बोलामानव है तू बहुत ही भोला …

करना है दंभ का संहार

शिव की प्रतिमा बन बैठा हूँ  आज हलाहल पीकर  भस्मासुर को मैं वर दे चुका  आज अपनी धुनि रमाकर  समय अब पुकार रहा मुझे  है पुकार धुनि तजने की  रच मोहिनी अवतार एक बार  करना है भस्मासुर पर वार  शिव की प्रतिमा बन बैठा हूँ  देकर भस्मासुर को मैं वर हलाहल भी पी चुका जीवन मैं  …

शिव से पूछो क्या है मुझमें

शिव से पूछो तुम क्या है मुझमें  क्यों आज शिव है मुझमें  हाला मैं क्या पी आया जग की  क्या बन बैठा हूँ शिव की प्रतिमा  तन्द्रा ना करो भंग मेरी तुम  ना करो मुझसे अब कोई छल  कि कब मैं शिव बन जाऊं  कि कब मुझमें बस जाए शिव  हाला मैं बहुत पी चुका  जीवन में  बहुत …

मुझमें मेरा शैंतां नज़र आता है

मुस्कुराहट से मेरी हाल-ऐ-दिल बयान नहीं होता नज़रों से मेरी मेरे ईमान का गुमान नहीं होता सोचते हो तुम गर मुझे जानते होतो मेरे दीदार से मेरे दिमाग का इल्म नहीं होता कहीं गर तुम मेरे आब -ऐ-तल्ख़ देखोगेतो कहीं मेरे दर्द का हिसाब मत लेनाकि  मेरे चेहरे के इंतेखाब-ऐ-आलम सेमेरी हार का हिसाब मत लेना मुस्कराहट …

एक कवि की पीड़ा

जब कभी कविता की पंक्तियाँ पढ़ता हूँ  तो भाषा का अनुचित प्रयोग का ज्ञान होता है हिंदी में कही जाने वाली पंक्तियों में  अन्य भाषाओं के शब्दों का समावेश होता है ना जाने कहाँ विलीन हो गई है परिपक्वता अब तो काव्य की रचना मैं भी है अराजकता भावनात्मक विश्लेषण भी अब नहीं है होता …

बात की बात

कहीं दिन कहीं रात की है बात कि लफ़्ज़ों से मुलाक़ात की है बात नहीं कोई शिकवा किसी लम्हे से हमें  गर इस नज़्म का तकल्लुफ़ ना हो तुम्हें कि यहीं एक बात से निकलती है एक बात कहीं दिन तो कहीं रात में गुज़रती है बात लफ़्ज़ों से कहीं तो कहीं अदाओं से कही …

ज़िन्दगी के फलसफे

ज़िन्दगी से जो मिला वो गम ना थे कुछ गर वो थे तो लम्हों के तज़ुर्बे सीने से लगाया जिन्हें वो गम ना थे कुछ गर वो थे तो तमन्नाओं के जनाजे तसव्वुर से थे वो लम्हे हमारे जिन्हें हमने बुना था तमन्नाओं के सहारे  तजुर्बों ने हमको दिखाई ऐसी असलियत कि गमों से लगा …

आसार ऐ हालात

ना हालात ना ही आसार मेरी ज़िंदगी हैकि ज़िन्दगी नहीं बनती इनसे मुक्कमलतासीर इनकी मिलती जरूर ज़िन्दगी मेंलेकिन ज़िन्दगी इनकी मोहताज़ नहीं चलें हम ज़माने के साथ कभीया कभी ज़माना चले साथ हमारेज़िन्दगी में इसका अहम इतना नहींजितना है हमारी ज़िंदगी का हमारे लिए सोचते हैं अक्सर हालात यूँ न होतेकी अभी आसार भी ऐसे …