तलाश-ऐ-अक्स

ज़िन्दगी में अपना अक्स खोजता हूँरात–ओ–सहर आइना देखता हूँवक्त का दरिया है की थमता नहींउम्र का आँचल है की रुकता नहीं सोचता हूँ यूँही अक्सरसुलझाता नहीं क्यों ये भंवरमझधार में ना जाने क्यूँतलाशता हूँ मैं हमसफ़रज़िन्दगी में ना जाने क्यूँखत्म सी नहीं होती तलाशकि मौत कि और बढते हुए खोजता हूँ ज़िन्दगी के माने

इल्तेजा

शाम–ऐ–गम को रंगीन करके ख्वाबों में तेरे खोए रहते हैंगर भूले से आओ सामने तुम तो ख्वाब समझ कर सोये रहते हैंजुल्फों के साए में छुपा लो तुम कि जिंदगी से रुसवा हुए जाते हैंयादों में बसा लो आज हमें कि बाँहों में बेदम हुए जाते हैं रुख ना मोडो इस कदर बेरूख होकर ऐ …

पथ्थर

टूटना तो आइने की किस्मत हैआपकी खूबसूरती कि ये एक खिदमत हैसोचता हूँ इस मोड पर आकरक्यूँ ना आपसे ये सवाल करूँकि कहीं किसी मुकाम परक्या कभी किसी पथ्थर को तराशा हैयूँ देखिये कि शीशे की मूरत नहीं बनतीपथ्थर तराश इंसान इबादत करते हैं

मोहब्बत का परवाना

हमने दो लफ्ज क्या कहे इश्क परकि दुनिया ने हमें यूँ सुनायान हम सोच सके कि क्या है खता हमारीकि काँटों से हमारी सेज को सजायाना जानते थे कि वो लफ्ज हमारेकरेंगे हमें इस कदर रुसवाकि बेआबरू कर हमेंयूँ जार जार करेगी दुनियाकैसे कहें उनसे हम अपनी कहानीकैसे बयां करें हाल-ऐ-जिंदगानीक्या कहें कि क्या दर्द …