व्यंगात्मक

चंद मुक्तक

राजनीति के अखाड़े में मिले कुछ नेता मिल कर वो बन गए देश के क्रेता कहते हैं आज वे खुद को भारत माँ के पूत घोटालों का नाम ले बन गए अशांती के दूत|| __________________________________________ काल का ग्रास बना है आज मेरा देश दानव घूम रहे यहाँ ले कर मानव का भेष हर ओर आज …

नेताओं की अठखेलियाँ

चंद नेता चंद बोलियाँ  देखो संसद में इनकी अठखेलियाँ ना इनकी कथनी में दम है ना दम है इनकी करनी में पांच साल में ये एक बार दिखते घर घर आते वोट मांगते झुक झुक कर नमस्कार करते देश की तरक्की का दावा करते जीत कर जब ये सरकार बनाते घोटालों की फेरहिस्त बनाते भर …

धरा पर राज करते चोर

मेरे देश में देखो कितने भरे चोर यहाँ बिन बरसात भी नाचे हैं मोर चारो ओर बस एक ही शोर घोर कलयुग है कलयुग है ये घोर कहीं है मैडम, तो कहीं दीदी तो कहीं है अम्मा का बोलबाला राज में इनके देखो देश को हर कोई कर रहा इसे सिर्फ खोखला चारो ओर आज …

भिखारी का प्रश्न

बाज़ार में घुमते घुमाते मिला मुझे एक भिखारी  देख मुझे उसने खाने की लगाईं गुहारी  पूछा मैंने उससे कि है क्या उसकी मंशावह बोला कि दो जून रोटी है उसकी अभिलाषा बैठ पास उसके मैंने उसे समझाया बहुतकर परिश्रम पाए पारिश्रमिक समझाया बहुतथा वह अपनी करनी पर अडिगपूछ बैठा वह प्रश्न अत्यंत ही जटिल ना मुझे कुछ सूझा …

सरकार की बिजली की माया – प्रथम प्रयास

चला जब में जीवन डगर में  दिखा सर्व ओर अँधियारा मुझे तभी दिखी दूर मुह्जे रौशनी बढ़ चला में उसी दिशा में पास पहुँच देखा मैंने  रौशनी थी वहाँ लालटेन की चारो ओर उसके थे बैठे बच्चे पढ़ रहे थे अपने पाठ जो पूछा मैंने उनसे क्या है उनका ध्येय बोला एक नन्हा मुझसे दिन में …

सरकार की बिजली की माया

चला जब में जीवन डगर में  दिखा सर्व ओर अँधियारा मुझे तभी दिखी दूर मुह्जे रौशनी बढ़ चला में उसी दिशा में पास पहुँच देखा मैंने  रौशनी थी वहाँ लालटेन की चारो ओर उसके थे बैठे बच्चे पढ़ रहे थे अपने पाठ जो पूछा मैंने उनसे क्या है उनका ध्येय बोला एक नन्हा मुझसे दिन में …

कहने को शब्द नहीं

कहने को क्या कहें कि कहने को शब्द नहीं बाहों में हम किसे लें, अपना कहने को कोई नहीं देखते जिस ओर हैं, समय का दिखता फेरा बढ़ें जिस ओर भी डगर पर दिखता काँटों का डेरा जाएँ भी तो इस जहाँ में कहाँ जाएँ हम स्वर्ग सी धरती पर भी नृत्य करती हिंसा कहने …

राजनीतिक अराजकता

था वो मेरा देश जिसमे बसा करता था सोहार्द्र आज उस देश को जला रही है इर्ष्या की अगन देखता जिस और हूँ दिखती है बंटवारे की छवि गणतन्त्र कहलाने वाला मायातंत्र का बना निवाला करो या मरो था जिस देश को कभी प्यारा  आज उस देश में गूँज उठा मारो मारो का नारा राजनीति …

उठो भारत के निर्लज्ज कपूतों

पावन धरा पर राज करते कपूतोंअब तो निद्रगोश से निकलोभटक रहा राष्ट्र में हर पथिकअब तो अपने लोभ त्यागोउठो भारत माता के निर्लज्ज कपूतोंकुछ तो संकोच करोराष्ट्र निर्माण कार्य मेंकुछ तो नव प्राण भरोनव निर्माण कर इस धरा परजन जीवन का मार्ग दर्शन करोउठो धरा के निर्लज्ज कपूतोंकुछ तो जीवन में संकोच करोभोर भई नव …

हम उस देश के वासी हैं

हाथों की सफाई रहती है जहाँ दिल में केख पुती है हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं जिस देश में महंगाई रुलाती है नेता जो हमारे होते हैं वो जान के भूखे होते हैंवोट का लालच है उनको  जात का बटवारा करते हैंहमारे लिए जो भारत माँ सदियों से सभी कुछ …