Abstract Poems

अजनबी तराने

कहीं तुम जब दिखे थे, थे एक अजनबीकहीं तुम जब मिले थे, थे एक अजनबीफिर कहीं तुमसे हुई पहली मुलाक़ातथी वो एक अजीब सी रात हवा में थी तुम्हारी ही अपनी ख़ुशबूतारों का नहीं था तब ख़ुद पर क़ाबूफिर ना जाने कहाँ से शुरू हुए तरानेयादों में भी लगे हम उन्हें अपनाने

डियर ज़िन्दगी

डियर ज़िन्दगी तू बेशक हमें नचालेकिन कुछ गाने तो अच्छे बजाकि तरानों में तेरे हम खो जाएँबेशक हम मदहोश हो जाएँ!! ज़िंदगी बोली फिर हमसेतुम मेरी धुन पर नाचते हो कबसेगानों की तो यूँ फ़रमाइश करते होकभी उनमें डूबी धुन भी सुनते हो? इन तरानों की तुम बात भी मत करनातुमको तो बस आता है …

प्रकृति की गोद

लहरों की चंचलता अठखेलियाँ लगाती हुईसागर की गहराई उनकी चंचलता समेटती हुईकहीं दूसरे छोर पर अंबर के आँचल में सिमटीसूरज की किरणे उजास फैलाती हुईयही दृश्य है सुबह की बेला में यही खेल है प्रकृति की गोद में

अंतर्मन की ज्वाला

अंतर्मन में बसी है जो ज्वाला ढूंढ रही है बस एक मुख इतने वर्षों जो पी है हाला बन रही है अनंत दुःख नागपाश नहीं कंठ पर ऐसी जो बाँध दे इस जीवन हाला को प्रज्वलित ह्रदय में है ज्वाला ऐसी बना दे जो हाला अमृत को ज्वाला जब आती है जिव्हा पर अंगारे ही …

जीवन द्वंद्व में लीन

जीवन द्वंद्व में लीन है मानव  ढूंढ रहा जग में स्वयं को  नहीं कोई ठोर इसका ना दिखाना  दूर है छोर, ढूंढने का है दिखावा  नहीं किसी को सुध है किसी की  अपने ही जीवन में व्यस्त है हर कोई  ढूंढ रहा है हर कोई स्वयं को  छवि से भी अपनी डरता है हर कोई  …

अभी कुछ दिन ही तो बीते हैं

निगाहों में तेरी ज़िंदगी अपनी ढूँढते है जीने के लिए तेरी बाहों का आसरा चाहते हैं दिन कुछ ही गुज़रे है दूर तुझसे फिर भी ना जाने एक अरसा क्यूँ बिता लगता है  ज़ुस्तज़ु है मेरी या है कोई आरज़ू कि आँख भी खुले तो तेरी बाहों में  और कभी मौत भी आए तो  आसरा …

मर्यादा में जीना सीखो

आनंदन नहीं दिखता इनको जो अफ़ज़ल पर रोए हैं राम इनको काल्पनिक दिखता बाबर इनका महकाय है रामायण इनकी है कहानी मात्र  किंतु शूर्पणखा एक किरदार है महिसासुर इनको खुद्दार दिखता दुर्गा नाम से इनका क्या पर्याय है राष्ट्र विरोधी कथनो और नारों में  दिखती इन्हें अपनी स्वतंत्रता है वन्दे मातरम के उच्च स्वर में …

रिश्तों का आलम

फ़िज़ाओं के रूख से आज रूह मेरी काँप उठी है कि तनहाइयों के साये में मेरी ज़िंदगी बसर करती है जिनको अपना समझा था वे बेग़ाने हो गए जिनके साथ का आसरा था वही तूफ़ान में छोड़ चले गए की अब तो आलम है कुछ ऐसा कि रिश्तों से ही डर लगता है ढूँढते थे …