Abstract Poems

ज़िन्दगी के फलसफे

ज़िन्दगी से जो मिला वो गम ना थे कुछ गर वो थे तो लम्हों के तज़ुर्बे सीने से लगाया जिन्हें वो गम ना थे कुछ गर वो थे तो तमन्नाओं के जनाजे तसव्वुर से थे वो लम्हे हमारे जिन्हें हमने बुना था तमन्नाओं के सहारे  तजुर्बों ने हमको दिखाई ऐसी असलियत कि गमों से लगा …

आसार ऐ हालात

ना हालात ना ही आसार मेरी ज़िंदगी हैकि ज़िन्दगी नहीं बनती इनसे मुक्कमलतासीर इनकी मिलती जरूर ज़िन्दगी मेंलेकिन ज़िन्दगी इनकी मोहताज़ नहीं चलें हम ज़माने के साथ कभीया कभी ज़माना चले साथ हमारेज़िन्दगी में इसका अहम इतना नहींजितना है हमारी ज़िंदगी का हमारे लिए सोचते हैं अक्सर हालात यूँ न होतेकी अभी आसार भी ऐसे …

इस दुनिया में

इस दुनिया में दर्द और भी हैकहीं भीड़ में एक दर्द और भी है हर ओर मैं देखता हूँ दर्द का मंज़रकि इस दर्द में तड़पे परवाने और हैं दर्द किसका क्या है, इल्म नहीं मुझेलेकिन दिखती दुनिया दर्द से सराबोर है हर मोड़ पर सोचता हूँ मिलेगा मेहरबाँ कोईकि महकाएगा इस ज़मीं को सुर्ख …

शुक्राना बद्दुआ का

बद्दुआ में भी तो शामिल है दुआतो क्या हुआ तुमने हमें बद्दुआ दीकहीं तुम्हारे जेहन में दुआ के वक़्तइस काफ़िर का नाम तो शुमार हुआ कि ज़िन्दगी भर की बद्दुआओं मेंइस काफ़िर का नाम लेकरअपनी इबादत में ऐ ख़ुदादेने वाला मेहरबाँ तो हुआ गर दुआओं में मेरा नाम ऐ खुदातेरे इल्म में ना आया कभीतो …

मैं शिव हूँ, शिव् है मुझमें

मैं शिव हूँ, शिव् है मुझमें  ये राष्ट्र मेरा शिवाला  हाँ हूँ मैं शिव और शिव है मुझमें  पीता आया हूँ बरसों से मैं हाला  एक युग बीत गया तपस्या में फिर भी नरसंहार हुआ है  एक युग हुआ मेरे आसान को  फिर भी विनाश नहीं है थमता  क्या भूल गए तुम मुझको  यदि पी …

बहुत हो चुका परिहास

रक्त की आज फिर बानी है धारा  फिर रहा मानव मारा मारा  हीन भावना से ग्रसित अहंकारी  फैला रहा घृणा की महामारी  वर्षो बीत गए उसको समझाते  हाथ जोड़ जोड़ उसे मनाते  फिर भी ना सीखा वो संभलना  आता है उसे केवल फिसलना  सन सैंतालीस में खाई मुँह की  सन पैंसठ में भी दिखाई पीठ  सन …

दरख़्त

शाख वो काट रहे, उसी शाख पर बैठकि कुदरत की नेमत पर कर रहे घुसपैठशाख पर हुई चोट से दरख़्त सकपकाया आंधी के झोंके में उसने उस इंसां को गिरायाचोट लगी उसपर तो इंसां चिल्लायाशर्मसार नहीं हुआ ना उसको समझ आयाउठा कुल्हाड़ा उसने दरख़्त पर चलायाइस हिमाकत पर उसकी सरमाया भी गुस्सायाआसमाँ में बादल गरजे, …

ता ज़िन्दगी मैं सुनता रहा

ता ज़िन्दगी मैं खामोश रहाखामोश दर्द में जीता रहाक़ि सोचता था कभी ज़िन्दगी मेंमैं हाल-ए-दिल बयां करूँगा सुनते सुनते होश खो गएहाल-ए-दिल बयां ना हुआदर्द अपनी हद से आज़ाद हुआफिर भी शब्द जुबां पर ना आए आज सोचा था मेरे अपने होंगेजो मुझमें एक इंसां देखेंगेशायद वो मुझे समझेंगेकभी बैठ साथ मेरी सुनेंगे जब प्लाट …