Abstract Poems

अल्पविराम

कलम आज भीगी है अश्रुओं से पत्तों की तरह बिखरे हैं विचार  अल्पविराम सा लग गया है जीवन में  अर्धमूर्छित हो चला है मष्तिस्क  ह्रदय में आज बसी है जीवनहाला जीवन भी भटक गया है हर राह अंधकारमय है  हर ओर छा रहा अँधियारा  कलम से आज निकल रही अश्रुमाला पी रहा आज मैं अपनी …

नहीं तेरे लहू में वो रंग

लहू तेरा बहा है आज  लुट रही कहीं तेरी अपनी लाज नहीं किंतु तेरे लहू में वो रंग नहीं उस लुटती लाज के कोई संग कहीं दूर कोई धमाका हुआ किसी का बाप, भाई, बेटा हताहत हुआ छपा जैसे ही यह समाचार गरमा गया सत्ता का बाज़ार   नहीं तेरे लहू से इनको कोई सरोकार …

हृदयोदगार

चिंतन मनन की यह धरा थी आज इसपर भी मंथन कर दिया अनेकता में एकता की यह धरा थी आज उसको भी तुमने तोड़ दिया सागर मंथन से निकला विश पी शिव शम्भु ने जग को तारा था अब इस धरा मंथन का विश कौन शिव बन पी पाएगा उस युग में तांडव कर शिव …

ना आज कोई रुख़्सार

नज़रों के सामने हमने वो देखा है हर हस्ती को आज हँसते देखा है ख़ुशनुमा आज हर रूह है शबनम भी आज चमकती चाँद सी है फैला है उजाला हर और  बयार भी हल्की हल्की बहती है आज क़ुदरत का नग़मा सुन रहा मैं हर और ना किसी की आज तवज्जो है ना कोई कर …