Abstract Poems

कलम आज फिर आमादा है

कलम आज फिर आमादा है  अपना रंग कागज़ पर बिखेरने को  रोक नहीं पा रहे हम आज कलम को  जो लिख रही हमारे ख्यालों को  ना जाने क्यों हाथ भी साथ नहीं  ना जाने क्यों कर रहे ये मनमानी  आज कलम फिर आमादा है  लिखने तो आवाज़ हमारी  हर पल सोचते हैं खयालों को रोकना  …

पशोपेश

सामने मेरे इतना नीर है  बुझती नहीं फिर भी मेरी प्यास है  जग में बहती इतनी बयार है  रुकी हुई फिर भी मेरी स्वांश है  साथ मेरे अपनों की भीड़ अपार है  फिर भी जीवन में एज शुन्य है  चहुँ और फैला प्रकाश है  फिर भी जीवन यूँ अंधकारमय है  नहीं जानता जीवन की क्या …