Abstract Poems

हृदयोदगार

चिंतन मनन की यह धरा थी आज इसपर भी मंथन कर दिया अनेकता में एकता की यह धरा थी आज उसको भी तुमने तोड़ दिया सागर मंथन से निकला विश पी शिव शम्भु ने जग को तारा था अब इस धरा मंथन का विश कौन शिव बन पी पाएगा उस युग में तांडव कर शिव …

ना आज कोई रुख़्सार

नज़रों के सामने हमने वो देखा है हर हस्ती को आज हँसते देखा है ख़ुशनुमा आज हर रूह है शबनम भी आज चमकती चाँद सी है फैला है उजाला हर और  बयार भी हल्की हल्की बहती है आज क़ुदरत का नग़मा सुन रहा मैं हर और ना किसी की आज तवज्जो है ना कोई कर …

कलम आज फिर आमादा है

कलम आज फिर आमादा है  अपना रंग कागज़ पर बिखेरने को  रोक नहीं पा रहे हम आज कलम को  जो लिख रही हमारे ख्यालों को  ना जाने क्यों हाथ भी साथ नहीं  ना जाने क्यों कर रहे ये मनमानी  आज कलम फिर आमादा है  लिखने तो आवाज़ हमारी  हर पल सोचते हैं खयालों को रोकना  …

पशोपेश

सामने मेरे इतना नीर है  बुझती नहीं फिर भी मेरी प्यास है  जग में बहती इतनी बयार है  रुकी हुई फिर भी मेरी स्वांश है  साथ मेरे अपनों की भीड़ अपार है  फिर भी जीवन में एज शुन्य है  चहुँ और फैला प्रकाश है  फिर भी जीवन यूँ अंधकारमय है  नहीं जानता जीवन की क्या …