ज़िन्दगी से जो मिला वो गम ना थे कुछ गर वो थे तो लम्हों के तज़ुर्बे सीने से लगाया जिन्हें वो गम ना थे कुछ गर वो थे तो तमन्नाओं के जनाजे तसव्वुर से थे वो लम्हे हमारे जिन्हें हमने बुना था तमन्नाओं के सहारे तजुर्बों ने हमको दिखाई ऐसी असलियत कि गमों से लगा …
विमुद्रीकरण किस प्रकार चिंता जनक है कि विमुद्रीकरण की कतार में हुई मृत्यु एक राजनितिक पहलू बन जाता है बिना किसी पुष्टिकरण है पत्राचार का एक बन जाता है इन बुद्धिजीविओं से विनती है यदि तुम चाहते हो ऐसे ही विषय तो जरा ध्यान लगाना दक्षिण में कुछ वहां भी सिधार गए है अम्मा के …
Some call it demonization Some call it normalization When I looked at it It seemed to be Demonetization That was the day to remember When color of money became amber Though it was black of white With recall it lost its shine Jobs were lost expenses were tight Make ends meet was tough to abide …
आज की समय में कौन अपना है कौन परायाकैसे पहचान करें किसमे राम किसमे रावण समायाकैसे स्वयं को कोई चैतन्य करेजब भगवान का मोल भी यहाँ पैसों में धरेनहीं मिलता बिन माया के कुछ संसार मेंबिन माया अपने भी दिखाते हैं बेग़ानो मेंकैसे करे अब स्वयं को हम चैतन्यकि अब रहते हैं रिश्तों की क़ब्र …
मैं शिव हूँ, शिव् है मुझमें ये राष्ट्र मेरा शिवाला हाँ हूँ मैं शिव और शिव है मुझमें पीता आया हूँ बरसों से मैं हाला एक युग बीत गया तपस्या में फिर भी नरसंहार हुआ है एक युग हुआ मेरे आसान को फिर भी विनाश नहीं है थमता क्या भूल गए तुम मुझको यदि पी …
यदि कहीं ज्ञान बँट रहा है तो तू ज्ञान बंटोर ले यदि कोई ज्ञान बिखेर रहा है तो तू ज्ञान बंटोर ले ज्ञानवर्धन कोई क्रीड़ा नहीं वर्षों की तपस्या है ज्ञान से तू समृद्ध होगा ज्ञान से तू बलवान होगा ज्ञान का कोई प्रदर्शन नहीं होता कहीं बंटता है तो कोई पाता है ज्ञान कभी ख़त्म नहीं होता खोता नहीं …
रक्त की आज फिर बानी है धारा फिर रहा मानव मारा मारा हीन भावना से ग्रसित अहंकारी फैला रहा घृणा की महामारी वर्षो बीत गए उसको समझाते हाथ जोड़ जोड़ उसे मनाते फिर भी ना सीखा वो संभलना आता है उसे केवल फिसलना सन सैंतालीस में खाई मुँह की सन पैंसठ में भी दिखाई पीठ सन …
शाख वो काट रहे, उसी शाख पर बैठकि कुदरत की नेमत पर कर रहे घुसपैठशाख पर हुई चोट से दरख़्त सकपकाया आंधी के झोंके में उसने उस इंसां को गिरायाचोट लगी उसपर तो इंसां चिल्लायाशर्मसार नहीं हुआ ना उसको समझ आयाउठा कुल्हाड़ा उसने दरख़्त पर चलायाइस हिमाकत पर उसकी सरमाया भी गुस्सायाआसमाँ में बादल गरजे, …
हृदय पर तेरे शाब्दिक बाण के घाव लिए इस संसार में यूँही भटकते रहते हैं हृदय में लिए तुझसे बिछड़ने की पीड़ा आज जीवन जीने की कला सीख रहे हैं तुम मरने की क्या बात कर रहे हो यहाँ कितने हृदय में पीड़ा लिए जीते है जीवन का हलाहल पी जीते है अपनो से बिछड़ने …
कहते इसे कहानी घर घर की हैं इसमें ना कोई अपना है ना पराया पाना हर कदम पर तुमको धोखा है यही बस इस कहानी का झरोखा है कोई किसी का नहीं है यहाँ सारे अपने आप से ही जूझ रहे किसी को नहीं है समय यहाँ सारे अपने ही ग़मों से लड़ रहे कहते …