Contemporary Poetry

कहने को बहुत कुछ था

कहने को बहुत कुछ था  मगर वो सुन नहीं पाये  आये थे मेरे दर पर मिलने  मगर मिल नहीं पाये  हमने सोचा कि गुफ्तगूं करेंगे  मगर फिर खामोश ही रह गए  कहने को बहुत कुछ था  मगर वो सुन नहीं पाये  अंदाज़ वो अपने अब देखते हैं  आईने में अब खुद से छुपकर  जुबां पर उनके …

दूर निकल आए हैं

दूर निकल आए हैं -२ हम तेरी चाहत में नहीं अब दिखती खुदाई  तेरी नज़रों की जुदाई में  दूर निकल आए हैं -२ हम तेरी निगाहो में नहीं मिलती राह अब हमें तेरी अपनी निगाहों में  कहीं क़ाफ़िला निकल कोई कहीं चाहत का जनाज़ा रूखसत हुए आज कुछ कुछ को मिला नया ज़माना दूर निकल …

क्या तेरा खोया है?

खोया सा आज तेरा दिल है खोये खोये से हैं तेरे शब्द  खोयी खोयी सी ये निगाहें  क्या तेरे सनम आज खोये हैं  किस तरह तुझे आज ढूंढे  कि  आज तेरा वज़ूद ही ग़ुम है निगाहों में दिखता एक सवाल है  कि आज तेरी ज़िन्दगी ही ग़ुम है  किस राह की तुझे तलाश है किस राह खोया है …

तू

तू जब गुलाब सी यूँ खिलती है मैं भँवरा बन वहीं मँडराता हूँ  तू जब जाम से छलकती है  मैं वहीं मयखाना बसा लेता हूँ तू जब कहीं खिलखिलाती है  मैं वहीं अपना घर बना लेता हूँ जीवन के लम्बे इस सफ़र में तुझे मैं हमसफ़र बनाए जाता हूँ तू भले अपना राग गाती है  …

पथिक

चला जा रहा अपने पथ पर अनभिज्ञ अपने ध्येय से जो मोड़ आता पथ पर चल पड़ता पथिक उस ओर विडम्बना उसकी यही थी न मिला कोई मार्गदर्शक अब तक केवल चला जा रहा था अज्ञानी एक पथभ्रष्ट सा हर पथ पर खाता ठोकर हर मोड़ पर रुकता थककर किन्तु फिर उठता चलता अज्ञानी एक …

सूखा आज हर दरिया

सूखा दरिया सूखा सागर ख़ाली आज मेरा गागर सूखे में समाया आज नगर हो गई सत्ता की चाहत उजागर बहता था पानी जिस दरिया में आज लहू से सींच रहा वो धरा को अम्बर से अंबु जो बहता था आज ताप से सेक रहा वो धारा को सूखा आज ममता का गागर सूखी हर शाख़ …

नहीं तेरे लहू में वो रंग

लहू तेरा बहा है आज  लुट रही कहीं तेरी अपनी लाज नहीं किंतु तेरे लहू में वो रंग नहीं उस लुटती लाज के कोई संग कहीं दूर कोई धमाका हुआ किसी का बाप, भाई, बेटा हताहत हुआ छपा जैसे ही यह समाचार गरमा गया सत्ता का बाज़ार   नहीं तेरे लहू से इनको कोई सरोकार …