बैठ मदिरालय मैं अज्ञानी मैं कर रहा ज्ञान वर्धन इतने ज्ञानी यहाँ मिले हैं नहीं ज्ञान को बंधन दो घूँट मदिरा के उतार हलक से कर रहा मैं क्रीडा आज जान वर्धन करना है उठाया है मैंने ये बीड़ा जीवन की घनघोर घटा से जिस असमंजस में घिरा ज्ञान अर्जन कर उस घटा से आज …
आज पीकर भी इतनी जीवन हालाबूँद नहीं छूटी ना टूटी अश्रुमालाउठा आज मैं पी गया विष का प्यालाफिर भी अटूट है है जीवन मालाप्रताड़ना से भी नहीं रहा अछूताअज्ञानी से बन गया मैं ज्ञान का दाताफिर भी अटूट है मेरी ये अश्रुमालाजीवन हाला से भरा है आज मेरा प्यालापीकर भी उसे अटूट है जीवन की …
कारे बदरा कारे मेघाबरसे ऐसे अबके बरसघाटी में वो नीर बहा,जन जीवन हुआ नष्टदेवों की घाटी थी वो,जहां वर्षा ने संहार किया हजारों के प्राण लिए,लाखों को बेघर कियाअबके बरस मेघा ऐसे बरसेधरा पर नरसंहार हुआजो वर्षा करती थी धरा का श्रृंगारउसने ही नरसंहार किया प्रकृति का प्रकोप कहें इसेया कहें मानव का लोभकेदार के …
कर आँखें नम नाम दे रहे भगवान् कोमानव की गलती से अंत हुआ मानव काप्रकृति का कर विनाशप्रकृति को ही कोस रहेजब जीना है गोद में प्रकृति कीतो जियो उसकी सुन्दरता मेंविकृत गर करोगे प्रकृति कोतो होगा प्रलय सा विनाश हीतांडव में प्रकृति केमिलाप होगा काल से हीग्रस्त अपनी ही करनी के हुए होफिर प्रकृति …
क्यों तू मुझे मारे, हूँ मैं तेरा ही अंश मेरे कारण ही चलते हैं ये वंश बेटी, बहन, पत्नी, माँ बन मैं रहती घर आँगन को मैं रोशन करती ना मार मुझे तू, हूँ मैं तेरा ही अंश मार मुझे ना बन तू एक कंस बन कली तेरा ही आँगन महकाऊँगी मीठी अपनी बोली तुझे …
क्या बिगाड़ा है मैंने तेरा मैंने तो तेरी कोख है बसाई क्यूँ हूँ मैं कष्ट तेरा मैंने तो तेरी पदवी बढाई क्यूँ तू चाहे मुझे मारना क्यूँ सहूँ मैं ये प्रतारणा बन मैं तेरी परछाई जी लूंगी हंस मैं तेरे बोल सह लूंगी ना मार मुझे मेरे जनम से पहले मेरी इतनी तो तू सुन …
बिन बादल इस पहर लगी बरखा की झड़ी अंतर्मन को जाने क्या गया चीर नैनो से ढलक गया जाने क्यों नीर प्रकट कर गया जैसे वो ह्रदय की पीड जाने कौन सी गाथा जिसमें उलझा चित्त गया जिसमें जीवन का सपना मिट ना जाने कौन सी बेला है कि टूटा हर सपना भूल गया जिस …
चिंता की चिता में जलता है जीवन का दिया उसपर मौत को बढ़ती डगर है अंधकारमय कैसे जिए तिल तिल इस पाशविक संसार में जहां हर पल भय सताता है जीवन राह में|| —————————————————– चिता जीवन की अब बन रही चहुँ ओर नहीं मानव जीवन का कहीं कोई ठोर ठिकाना नहीं जहां रहे मानव शान्ति …
उजड़ा अगर बसना चाहे तो उसे बसानिर्माण में अगर द्वंद्व है तो उसे जगाचाह है अगर तुझमे बसने की है आदमतो उठ और नाश की प्रवृत्ति से जा टकरा|| —————————————————— अँधेरी रात में दिवा जलाना है तो हे आदमउठ तू प्रकृति के तुफानो से लड़ जाअगर है तुझमे इतना ही दमतो उठ अपनों को साथ …
सरबजीत सिंह की मृत्यु ने देश तो झंकझोर कर रख दिया, और इसपर मेरे एक मित्र अनूप चतुर्वेदी ने एक कविता लिखी….जिसको मैं आपके लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ| किन्तु उनकी कविता ने मुझे चंद पन्तियाँ लिखने पर प्रेरित किया, जो उनकी कविता के बाद आपके लिए प्रस्तुत हैं – अनूप चतुर्वेदी की कविता – …