जीवन बरखा बन तुम आयी संग अपने खुशियों की बौछार लायी सूखे बंजर मेरे जीवन में तुम अपने सपनो का श्रृंगार लायी सजा संवार उन सपनो को जीने चला हूँ मैं अधूरे जीवन को तुम्हारे हंसी की बौछार से हरित करने चला हूँ जीवन बगिया को समेट अपनी सारी शक्ती करनी है अब जीवन भक्ती …
अधूरी भ्रान्ति अधूरे क्षण अधूरे हैं जहाँ सारे प्रण अधूरी शांति अधूरे रण अधूरे हैं यहाँ सत्ता के कण राष्ट्र ये मेरा आज अधुरा है सत्ता के भूखों से भरा है जीवन यहाँ आज निर्बल है जनता की सोच भी दुर्बल है अधूरी सोच नेताओं की अधूरी होड़ प्रशाशन की अधुरा यहाँ हर कृत्य है …
देखो मेरे देश में राजनीति का खेला प्रजातंत्र में लगता है राजतंत्र का मेला यहाँ नहीं है कोई किसी का, ना गुरु ना चेला बस सत्ता की दौड़ की यहाँ होती हमेशा बेला जनता चाहे भूखो मरे, या जले उसकी चिता निताओं को केवल रहती है अपनी गद्दी की चिंता नहीं यहाँ आदमी आदमी को …
घोटालों के इस देश में हर कोई करता घोटाले है जब सामने मामला आता है हम एक ही आलाप सुनते हैं इसकी निष्पक्ष जांच की जावेगी चीरहरण जब यहाँ होता अबला का सरकार फिर वही बात दोहराती जनता के आक्रोश को दबाने को फिर वही आलाप लगाती इसकी निष्पक्ष जांच की जावेगी बलात्कार यहाँ होता …
ना समझ हमारी सहनशीलता को कायरता हम तुझे छठी का दूध याद दिला सकते हैं ना हमें तू बर्बरता का रूप इतना दिखा हम आज भी तेरे ह्रदय से लहू निकाल सकते हैं जिनकी तुम भीख पर पलते हो उनकी वाणी हम मान नहीं सकते हमारी प्रभुसत्ता को ना दो चुनौती ना बनाओ हमें तुम …
मैं एक सैनिक हूँ, करता हूँ देश रक्षा देश सेवा के लिए रहता हूँ मैं तत्पर जान न्योछावर मेरी देश हित में कभी शूरवीर तो कभी शहीद हूँ मैं करता हर पल मैं अपना कर्म हूँ दुश्मन का भी करता आदर हूँ पर ललकार नहीं मुझे उसकी सहन प्रज्वल होती उससे हृदयाग्नि प्रबल उत्तर है …
देश के नेता जब हो चोर तो कैसे ना हो संसद में शोर हर पल लूटें जो देश की अस्मत तो कैसे जागे नागरिकों की किस्मत ======================== जहाँ न्यायपालिका करे उनकी रक्षा जहां न्यायाधीश मांगे उनसे भीक्षा जहाँ मिले उनसे गुंडों को दीक्षा कैसे बने वहां नागरिकों की आकांक्षा ======================== जहाँ देश के नेता करें …
विगत दिनों में जो घटित हुआ, उससे मन बड़ा ही आहत हुआ| चंद् विचार मन में ऐसी आये कि एक कविता का सृजन हुआ करती है कविता एक स्त्री के विचारों का उदगार कि हुआ कैसे उसके औचित्य का प्रचार…. _________________________________________________ माँ की कोख में सोती जब मैं जग मुझे चाहे मारना जब ले जन्म आऊँ …
श्रृंगार कर जब तू आयी दुल्हन का धड़कन थम गई मेरे ह्रदय की लगा उस पल मानो थम गया था समय रुक गया था श्रिष्टी का भी चक्र लाल चुनर ओढ़े जो तुम खडी थी दर पर सिमटी शरमाई सी कोलाहल हुआ अंतर्मन में हर ओर सुना मैंने बस एक ही शोर रूपवती गुणवती खडी …
तेरे नैनों की बोलियाँ तेरे अधरों की अठखेलियाँ नाम किसका लेती है कि करती हैं किसकी ये खोज तेरे क़दमों की ये आहट तेरे ह्रदय की घबराहट नाम किसका लेती है कि क्यूँ ये तुझे तडपाती हैं क्या यही तपस्या है तेरी क्या यही है तेरी प्रेमअगन क्या यही है श्रोत तेरे अश्रुओं का क्या यही है अंत तेरे …