कित जाऊं मैं तोहे ढूँढने कित जाऊं मैं तोहे पाने बीते जीवन के सब रैना छुपे हो कहाँ ओ मोरे चैना बिन चैना ये जीवन सूना सूनी बगिया घर भी सूना काट खाए मोहे बेचैनी भूली बिसरी है जीवन की कहानी ना जाने कहाँ खो गए तुम चैना ना जाने कैसे बदल गए ये रैना …
कासे कहूँ मैं अपनी विपदा कासे कहूँ मैं अपनी पीड़ा ममत्व तो ममत्व है कासे कहूँ मैं उसका महत्व माँ से मैं जुड़ा हूँ भावों में माँ से में करता हूँ अपनी बातें कासे समझाऊं तोहे मैं माँ से है मेरा अपना नाता का कहूँ तोसे मैं अपनी व्यथा ना तोहे समझनी ये गाथा माँ …
हो रही धरा की धरोहर जार जार स्त्री का हो रहा हस ओर बलात्कार सहिष्णुताहीन हो गया है ये संसार घृणा और पाप का लगा है हर ओर अम्बार हलाहल अपमान का पी रहे देव भी दानव कर रहे हर ओर राज सांसारिक मोह में लीं है मानव भी दे रहा दानवों को वो करने …
संग मेरे वो जो होती है लगता है मुझे ये जग न्यारा लगता है हर पल मुझे प्यारा समय बीत जाता है पलों में सारा जब वो नहीं होती संग मेरे मष्तिष्क में उसकी ही छवि होती है जब कहीं बातें उठती हैं बिन उसके कोई बात समाप्त नहीं होती संग उसके ही दिन चढ़े …
मेरी ज़िन्दगी में गर है अब तो वो तुम्ही हो तुम्ही हो तुम्ही हो ज़िन्दगी में गर कोई हो तो खुदा करे वो तुम्ही हो तुम्ही हो तुम्ही हो आलम-ऐ-ज़िंदगी में अब गर चाहते हैं किसीको तो ऐ जान-ऐ-वफ़ा वो तुम्ही हो, तुम्ही हो तुम्ही हो गम-ऐ-ज़िंदगी से परे साथ जिसका चाहते हैं तो ऐ …
जीवन बरखा बन तुम आयी संग अपने खुशियों की बौछार लायी सूखे बंजर मेरे जीवन में तुम अपने सपनो का श्रृंगार लायी सजा संवार उन सपनो को जीने चला हूँ मैं अधूरे जीवन को तुम्हारे हंसी की बौछार से हरित करने चला हूँ जीवन बगिया को समेट अपनी सारी शक्ती करनी है अब जीवन भक्ती …
अधूरी भ्रान्ति अधूरे क्षण अधूरे हैं जहाँ सारे प्रण अधूरी शांति अधूरे रण अधूरे हैं यहाँ सत्ता के कण राष्ट्र ये मेरा आज अधुरा है सत्ता के भूखों से भरा है जीवन यहाँ आज निर्बल है जनता की सोच भी दुर्बल है अधूरी सोच नेताओं की अधूरी होड़ प्रशाशन की अधुरा यहाँ हर कृत्य है …
देखो मेरे देश में राजनीति का खेला प्रजातंत्र में लगता है राजतंत्र का मेला यहाँ नहीं है कोई किसी का, ना गुरु ना चेला बस सत्ता की दौड़ की यहाँ होती हमेशा बेला जनता चाहे भूखो मरे, या जले उसकी चिता निताओं को केवल रहती है अपनी गद्दी की चिंता नहीं यहाँ आदमी आदमी को …
घोटालों के इस देश में हर कोई करता घोटाले है जब सामने मामला आता है हम एक ही आलाप सुनते हैं इसकी निष्पक्ष जांच की जावेगी चीरहरण जब यहाँ होता अबला का सरकार फिर वही बात दोहराती जनता के आक्रोश को दबाने को फिर वही आलाप लगाती इसकी निष्पक्ष जांच की जावेगी बलात्कार यहाँ होता …
ना समझ हमारी सहनशीलता को कायरता हम तुझे छठी का दूध याद दिला सकते हैं ना हमें तू बर्बरता का रूप इतना दिखा हम आज भी तेरे ह्रदय से लहू निकाल सकते हैं जिनकी तुम भीख पर पलते हो उनकी वाणी हम मान नहीं सकते हमारी प्रभुसत्ता को ना दो चुनौती ना बनाओ हमें तुम …