चिड़िया जब तुम चहचहाती हो मध्धम सुर में गाती हो सुर तुम्हारे जीवन संगीत सुनाते हैं कानों में प्रेम रस बरसाते हैं चिड़िया जब तुम चहचहाती हो नील गगन में इठलाती हो गीत मेरे गुनगुनाती हो जीवन में प्रेम रस लाती हो चिड़िया जब तुम चहचहाती हो ह्रदय में जीवन सितार बजाती हो सुर तुम्हारे नीवन …
जीवन संध्या में मिली तुम कुछ ऐसी सिमटी शरमाई सी कि छवि उतर गयी ह्रदय में तुम्हारी सादगी की कुछ ऐसी ज्वाला जली प्रेम की कि ह्रदय में अम्बार लगा तुम्हें जीवनसंगिनी बनाने को मन मेरा मचल उठा छवि तेरी जो ह्रदय में बनी थी उसका जब श्रृंगार हुआ सात फेरों के बंधन में बाँध तुम्हें …
पिया तोसे कैसे कहूँ, मोरा जियरा धडका जाए मोरा तन मन में जागी तोरे प्रेम की अगन कैसे कहूँ तोसे की ना जा बय्याँ छोड़, जियरा धडका जाए परदेस जो चले तुम संग हमें भी ले चलना बिन तोरे लागे सूना मोहे ये घर ये अंगना जिया में मोरे बस तोरी बसी है आस ना …
जीवन जो कभी नीरस था जिसमें केवल एक दर्द था लगता आज फिर सुखमय है उसमें तेरे आने से एक आस है दर्द जो था सिने में दबा जिसमें थी एक जीवंत अगन आज वो अगन शांत है ना उसमें अब एकांत है प्रेम की फिर है एक ज्वाला जली जीवन की फिर एक राह …
विलुप्त हो गए जाने कहाँ शब्द सूख गयी मेरी कलम की धारा जाने कहाँ कहाँ विचर रहा मेरा मन क्यों न फूंक रहा ये मेरी कविता में जीवन सुबह सवेरे जब उठता हूँ सुन चिडियों की तान लगता है जैसे भर गया हो नवजीवन में प्राण पर जब बैठता हूँ लिखने मैं कविता ना जाने …
कहाँ चला था करने मैं अभिव्यक्ति छीन गयी है मेरी हर शक्ति चेष्टा हुई, अपनाई मैंने भक्ति किन्तु रह गई अधूरी मेरी अभिव्यक्ति कहा जिसे, उसने कर दी अनसुनी बन के सामने मेरे एक अज्ञानी बहा कर भी मैं अपना रक्त ना कर सका अपनी भावना व्यक्त चला था मैं करने अभिव्यक्ति किन्तु ना मिला …
कल्पना की डोर थामेंशब्दों की माला पिरोयेकविता की पंक्तियों मेंकाव्य का आगमन हुआ काव्य के आगमन सेकवि की कल्पना मेंशब्दों की माला पहनेसजनी आभास हुआ सजनी के आभास सेउसके श्रृंगार मेंउसकी मधुर मुस्कान मेंनवजीवन का आरभ हुआ नवजीवन के आरम्भ सेकवि के श्रजनात्मक रूप सेनारी के श्रृंगार से काव्य की कल्पना का प्रारंभ हुआ||
उन्मुक्त जीवन जीने की चाह में चल दिया मैं पैसा कमाने भूख प्यास सब भुला दिए मैंने चल दिया मैं ऐश्वर्य कमाने पैसे की अंधाधुंध भूख में ऐश्वर्य की अंधभक्ति में भूल बैठा मैं अपना ध्येय खो बैठा मैं सबका श्रेय ना जाने किस पल अपनों से दूर हुआ ना जाने किस पल मैं विलीन …
कारी कारी अंधियारी रात में जब उजियारा फैले चंदा का अंगना में एक बहार आए सजना को सजनी भाये चांदनी में जो रूप खिले रजनी का श्रृंगार करे सजनी अपने साजन का मनभावन जो उजियारा भरे चांदनी सजना को दिखे मनमोहक सजनी कारी कारी अंधियारी रात में जब गगन में छाए चंदा साजन भर बाँहों …
राजनीति के अखाड़े में मिले कुछ नेता मिल कर वो बन गए देश के क्रेता कहते हैं आज वे खुद को भारत माँ के पूत घोटालों का नाम ले बन गए अशांती के दूत|| __________________________________________ काल का ग्रास बना है आज मेरा देश दानव घूम रहे यहाँ ले कर मानव का भेष हर ओर आज …