चंद नेता चंद बोलियाँ देखो संसद में इनकी अठखेलियाँ ना इनकी कथनी में दम है ना दम है इनकी करनी में पांच साल में ये एक बार दिखते घर घर आते वोट मांगते झुक झुक कर नमस्कार करते देश की तरक्की का दावा करते जीत कर जब ये सरकार बनाते घोटालों की फेरहिस्त बनाते भर …
कुछ कथनी कुछ करनी का है ये फेरा राजनीति में आज पड़ा है नासमझों का डेरा कोयले की दलाली में किये इन्होने हाथ काले इंधन का भाव बढ़ा, पड़ गए खाने के लाले फिर हुई कुछ इस प्रकार की हलचल दीदी ममता तक गई मचल त्याग मोह सत्ता का, किया ऐसा फेरबदल की मुलायम ने …
Few Lines Written to Oppose the Female Foeticide…..They may sound a bit haphazard, but they are the feelings that make me respect Women and Support the Cause to be Against Female Foeticide. अम्बा, अम्बे, अम्बालिके गौरी, सती, पार्वती महालक्ष्मी, सरस्वती, सावित्री ये सभी भी तो हैं देव स्वरुप स्त्री इनकी जब करते पूजा क्यों करते इनके …
आज मुझे मेरा देश पुकारे कहे मुझसे तू मेरे पास मेरे दुलारे जुड़े मुझसे उस अमिट इतिहास को देख देख तू इसमें बसी पित्रादर की छाया सुन तू प्रेम की मधुर वो झंकार सुन तू अम्बर में छाए मेघों का मल्हार मेरा देश मुझे रह रह पुकारे कहे बरखा की बूंदों के सहारे निहारता था …
मेरे देश में देखो कितने भरे चोर यहाँ बिन बरसात भी नाचे हैं मोर चारो ओर बस एक ही शोर घोर कलयुग है कलयुग है ये घोर कहीं है मैडम, तो कहीं दीदी तो कहीं है अम्मा का बोलबाला राज में इनके देखो देश को हर कोई कर रहा इसे सिर्फ खोखला चारो ओर आज …
बाज़ार में घुमते घुमाते मिला मुझे एक भिखारी देख मुझे उसने खाने की लगाईं गुहारी पूछा मैंने उससे कि है क्या उसकी मंशावह बोला कि दो जून रोटी है उसकी अभिलाषा बैठ पास उसके मैंने उसे समझाया बहुतकर परिश्रम पाए पारिश्रमिक समझाया बहुतथा वह अपनी करनी पर अडिगपूछ बैठा वह प्रश्न अत्यंत ही जटिल ना मुझे कुछ सूझा …
कहते हैं आज के ये नेता भर के अपनी झोली पेट भरने के लिए लगाओ 32 की बोली समझ नहीं आती मुझे इनकी यह पहेली सुन कर पक्ष उनके मेरी अंतरात्मा भी दहली खाने को जिस ग्राम में नहीं मिलती रोटी उस ग्राम के घर घर में मांगते ये मत की बोटी देते दिलासा दिखा …
चला जब में जीवन डगर में दिखा सर्व ओर अँधियारा मुझे तभी दिखी दूर मुह्जे रौशनी बढ़ चला में उसी दिशा में पास पहुँच देखा मैंने रौशनी थी वहाँ लालटेन की चारो ओर उसके थे बैठे बच्चे पढ़ रहे थे अपने पाठ जो पूछा मैंने उनसे क्या है उनका ध्येय बोला एक नन्हा मुझसे दिन में …
चला जब में जीवन डगर में दिखा सर्व ओर अँधियारा मुझे तभी दिखी दूर मुह्जे रौशनी बढ़ चला में उसी दिशा में पास पहुँच देखा मैंने रौशनी थी वहाँ लालटेन की चारो ओर उसके थे बैठे बच्चे पढ़ रहे थे अपने पाठ जो पूछा मैंने उनसे क्या है उनका ध्येय बोला एक नन्हा मुझसे दिन में …
कहने को क्या कहें कि कहने को शब्द नहीं बाहों में हम किसे लें, अपना कहने को कोई नहीं देखते जिस ओर हैं, समय का दिखता फेरा बढ़ें जिस ओर भी डगर पर दिखता काँटों का डेरा जाएँ भी तो इस जहाँ में कहाँ जाएँ हम स्वर्ग सी धरती पर भी नृत्य करती हिंसा कहने …