बाज़ार में घुमते घुमाते मिला मुझे एक भिखारी देख मुझे उसने खाने की लगाईं गुहारी पूछा मैंने उससे कि है क्या उसकी मंशावह बोला कि दो जून रोटी है उसकी अभिलाषा बैठ पास उसके मैंने उसे समझाया बहुतकर परिश्रम पाए पारिश्रमिक समझाया बहुतथा वह अपनी करनी पर अडिगपूछ बैठा वह प्रश्न अत्यंत ही जटिल ना मुझे कुछ सूझा …
कहते हैं आज के ये नेता भर के अपनी झोली पेट भरने के लिए लगाओ 32 की बोली समझ नहीं आती मुझे इनकी यह पहेली सुन कर पक्ष उनके मेरी अंतरात्मा भी दहली खाने को जिस ग्राम में नहीं मिलती रोटी उस ग्राम के घर घर में मांगते ये मत की बोटी देते दिलासा दिखा …
चला जब में जीवन डगर में दिखा सर्व ओर अँधियारा मुझे तभी दिखी दूर मुह्जे रौशनी बढ़ चला में उसी दिशा में पास पहुँच देखा मैंने रौशनी थी वहाँ लालटेन की चारो ओर उसके थे बैठे बच्चे पढ़ रहे थे अपने पाठ जो पूछा मैंने उनसे क्या है उनका ध्येय बोला एक नन्हा मुझसे दिन में …
चला जब में जीवन डगर में दिखा सर्व ओर अँधियारा मुझे तभी दिखी दूर मुह्जे रौशनी बढ़ चला में उसी दिशा में पास पहुँच देखा मैंने रौशनी थी वहाँ लालटेन की चारो ओर उसके थे बैठे बच्चे पढ़ रहे थे अपने पाठ जो पूछा मैंने उनसे क्या है उनका ध्येय बोला एक नन्हा मुझसे दिन में …
कहने को क्या कहें कि कहने को शब्द नहीं बाहों में हम किसे लें, अपना कहने को कोई नहीं देखते जिस ओर हैं, समय का दिखता फेरा बढ़ें जिस ओर भी डगर पर दिखता काँटों का डेरा जाएँ भी तो इस जहाँ में कहाँ जाएँ हम स्वर्ग सी धरती पर भी नृत्य करती हिंसा कहने …
भ्रष्ट नेता, भ्रष्ट कर्मचारी भ्रष्ट आज सारा देश है भ्रष्टाचार में डूबी सरकार भ्रष्टाचार का लगा अम्बार गौ चारा खाकर नेता बैठे अपने घर में वीर जवानो की मौत पर भी जेबें अपनी भर गए दूरभाष यन्त्र के तंत्र में भी मिला भ्रष्टाचार और कोयले की दलाली में हाथ काले किये बैठी सरकार हर ओर आज देखो …
अबके बरस सावन सुखा बीत गया ना पपीहे की प्यास बुझी ना प्यासी धरती को मिला पानी सूखे खेतों में बैठ, किसान तक रहा अपनी हानि क्या जी रहे हैं इस धरा पर इतने पापी जिनके पाप सह प्यासी धरा है काँपी क्या जन जीवन के लहू से सिंची है धरा कि ना मिली उसे …
अठखेलियाँ करते तेरे ये नैना दिल का मेरे हरते चैना ना जाने बोलते ये कौन सी भाषा जाने सुनाते हैं ये कौन सी गाथा अल्हड कहूँ मैं इन्हें या कहूँ चितचोर मृगनयन देख तेरे ह्रदय में जैसे नाचे मोर जब देखूं तेरे नैनों में जागे हर अभिलाषा पर समझ ना पाऊं कहे क्या ये, कहे कौन …
था वो मेरा देश जिसमे बसा करता था सोहार्द्र आज उस देश को जला रही है इर्ष्या की अगन देखता जिस और हूँ दिखती है बंटवारे की छवि गणतन्त्र कहलाने वाला मायातंत्र का बना निवाला करो या मरो था जिस देश को कभी प्यारा आज उस देश में गूँज उठा मारो मारो का नारा राजनीति …
खड़े जीवन दोराहे पर हमकिस ओर जाएँ हमएक ओर है कर्म क्षेत्रदूजी ओर है धर्मं का निवासजीवन के इस दोराहे पर मचा है ह्रदय में ऐसा द्वन्द गीता का उपदेश है कहताकर्म क्षेत्र की ओर है बढ़नारामायण का सार है कहताधर्मं क्षेत्र में चुकाना है ऋणमष्तिष हो चला है अब मूढ़प्रश्न है जटिल और गूढ़ आज …