भ्रष्ट नेता, भ्रष्ट कर्मचारी भ्रष्ट आज सारा देश है भ्रष्टाचार में डूबी सरकार भ्रष्टाचार का लगा अम्बार गौ चारा खाकर नेता बैठे अपने घर में वीर जवानो की मौत पर भी जेबें अपनी भर गए दूरभाष यन्त्र के तंत्र में भी मिला भ्रष्टाचार और कोयले की दलाली में हाथ काले किये बैठी सरकार हर ओर आज देखो …
अबके बरस सावन सुखा बीत गया ना पपीहे की प्यास बुझी ना प्यासी धरती को मिला पानी सूखे खेतों में बैठ, किसान तक रहा अपनी हानि क्या जी रहे हैं इस धरा पर इतने पापी जिनके पाप सह प्यासी धरा है काँपी क्या जन जीवन के लहू से सिंची है धरा कि ना मिली उसे …
अठखेलियाँ करते तेरे ये नैना दिल का मेरे हरते चैना ना जाने बोलते ये कौन सी भाषा जाने सुनाते हैं ये कौन सी गाथा अल्हड कहूँ मैं इन्हें या कहूँ चितचोर मृगनयन देख तेरे ह्रदय में जैसे नाचे मोर जब देखूं तेरे नैनों में जागे हर अभिलाषा पर समझ ना पाऊं कहे क्या ये, कहे कौन …
था वो मेरा देश जिसमे बसा करता था सोहार्द्र आज उस देश को जला रही है इर्ष्या की अगन देखता जिस और हूँ दिखती है बंटवारे की छवि गणतन्त्र कहलाने वाला मायातंत्र का बना निवाला करो या मरो था जिस देश को कभी प्यारा आज उस देश में गूँज उठा मारो मारो का नारा राजनीति …
खड़े जीवन दोराहे पर हमकिस ओर जाएँ हमएक ओर है कर्म क्षेत्रदूजी ओर है धर्मं का निवासजीवन के इस दोराहे पर मचा है ह्रदय में ऐसा द्वन्द गीता का उपदेश है कहताकर्म क्षेत्र की ओर है बढ़नारामायण का सार है कहताधर्मं क्षेत्र में चुकाना है ऋणमष्तिष हो चला है अब मूढ़प्रश्न है जटिल और गूढ़ आज …
अम्बर में जब छाए काले मेघा प्यासी धरती को एक आस लगी बरखा की बूंदे जब सिमटी आँचल में धरा की अपनी प्यास बूझी जन जन में उल्लास उठा हर ओर एक उन्माद दिखा बूंदों ने जब सींचा जड़ों को वृक्षों ने भी श्रृंगार किया देख धरा के वैभव को मयूर ने भी नृत्य किया …
दिवस के प्रथम प्रहार में सूरज अंधियारा हरता है पर मानव के जीवन में हर क्षण मानव ही मरता है भोर भये आँगन में पंछियों का स्वर घुलता है पर मानव के जीवन में हर क्षण कोलाहल ही गूंजता है ब्रह्म मुहूर्त से गोधुली वेला तक मानव के कर्म का चक्र चलता है पर मानव …
श्वेत वर्ण से ढँकी ये वादी, श्वेत तो शान्ति का है प्रतीक आज ना जाने ये श्वेत दे रहा क्यों शोक सन्देश लहुलुहान है ये धरती आज, सहमा है यहाँ जन जन सुनाई देती है हर ओर सिर्फ एक ही चिंघाड – रण रण रण देखता हूँ जब में भारत के मुकुट का ये हाल …
हिमालय की चोटी से शत्रु ने ललकारा हैआज बता दो बल कितना है भारत माँ के वीरों मेंसीमा लांघ शत्रु चढ़ आया आज तुम्हारे द्वारेमचा रहा इस धरती पर वो उद्दंड उत्पात रणक्षेत्र में हुआ कोलाहल जागो भारत के वीरोंजाग अपनी निद्रा से भारत माँ की पुकार सुनोलगा हुंकार रण की शत्रु ने तुम्हें ललकारा …
पावन धरा पर राज करते कपूतोंअब तो निद्रगोश से निकलोभटक रहा राष्ट्र में हर पथिकअब तो अपने लोभ त्यागोउठो भारत माता के निर्लज्ज कपूतोंकुछ तो संकोच करोराष्ट्र निर्माण कार्य मेंकुछ तो नव प्राण भरोनव निर्माण कर इस धरा परजन जीवन का मार्ग दर्शन करोउठो धरा के निर्लज्ज कपूतोंकुछ तो जीवन में संकोच करोभोर भई नव …