जीवन में झेले दुःख अत्यंत सुख की नहीं मुझे कोई आशा अश्रुओं से में अपने हृदयाग्नी भडकाता हूँ कुछ ऐसे ही मैं इस संसार में अपना जीवन यापन करता हूँ ना ही अब कोई आस है ना ही निरास जीवन से कोई भय निर्मोही निरंकार हो चला मैं अपने ही ह्रदय को आहात करता हूँ …
जो तुम संग मेरे आये, जीवन ने कुछ गीत सुनाये मद्धम से पुरवाई में महका मेरा आँगन जो तुम संग मेरे आये, जीवन ने यूँ गीत सुनाये सुबह के धुंधलके में, पंछियों ने पंख फडफडाये जिस पल नैन मैंने खोले, आमने तुमको पाया निंदिया कि गोद में भी, सपनों में तुम्हे पाया सजी संवारी दुल्हन …
घर से निकला था मैं जाने तो पाठशालापर रास्ते में ही मिल गई मुझे मधुशालामधुशाला में जा बैठा मैं भर अपना प्यालातभी देखी शिव पर चढती एक मालादेख शिव की प्रतिमा मधुशाला मेंखोजने चला मैं सत्य की राह मेंपहुंचा फिर मैं मधुशालाबहुत खोजा सत्य पर मुझे ना मिलाफिर बैठ मधुशाला में भर अपना प्यालाजो घूँट …
धीर धर बैठे हैं धरा परबादलों की ओढ़ चादरना अब चाह है सुरबाला कीना है कोई चाह मधुशाला केअधरों पर अब है देव मंत्रमष्तिष्क में है निर्मोह का तंत्रसाधू बन कर रहे हैं तपस्याना है अब जीवन में कोई आसअटल है अब मेरा ये प्रणनहीं हारना है जीवन रणबहुत बहा नैनों से नीरबहुत हुआ जीवन …
तेरे नैनो की ये भाषालज्जा की हो जैसे परिभाषाकोई जाने ना क्या है इनका संदेशाकोई जाने ना कैसी है इनमें याचना अंतर्मन में सुर तेरे ही नाद करेंह्रदय में तेरे ही गीत गुनगुनाऊंतू जो रहे साथ मेरे इस जीवन मेंमैं तेरे ही गीत गाऊंतू सुनती रहे ऐसे गीत मैं गाऊंतेरे नैनो की ये भाषा, जाने …
प्यार तो मैंने किया तुमसेपर मैं तुम्हारा प्यार ना पा सकाभरोसा तुमपर किया मैंनेपर तुम्हारा भरोसा ना पा सका तू ना मेरी बन सकी कभीना मुझे कभी अपना बना सकीना था छल, कपट हमारे बीचपर ना पनपा कभी विश्वास भी आज तू चली फेर कर आँखेंछोड़कर मेरी ये दुनियाअकेले ही अब चलना है मुझेअकेले ही …
मेरी कविता की पक्तियांकरती हैं जीवन वर्णनसार है इनमें जीवन काये हैं मेरे जीवन का अभिन्न अंगइनसे कैसे में दूर रहूँकैसे तोडूं में इनसे नाताजब जी भर आता है मेरातब साथ इन्ही का मिलताना मुझ बिन ये हैं इस जग मेंना बिन इनके मेरा कोई अस्तित्वछोड़ चाहे में जग दूं कभीये रहेंगी जग में बनकर …
मयंक ने शायद 1999 में ये कविता मुझे सुनाई थी| आज कुछ पुराने पन्नों से वो सामने आई तो सोचा मयंक की कविताओं के इस समूह में उसे भी जोड़ दूं – कविता तुम पर क्या कविता लिखूँकि तुम खुद प्राकृतिक कविता होतुम्हारी सादगी और शालीनता नेतुम्हारे सौंदर्य को और भी निखारा है|| उस पल …
मानव के कोतुहल का कोलाहलनष्ट कर रहा आज धरा धरोहर कोदानव शक्ति में झूम रहा है वो आजकर रहा अशांति का तांडव नृत्य देवों की इस भूमि पर दास बना वो दानव काअपने ही हाथों से काल ग्रास बना रहा बांधवों कोभूल कर प्रकृति की प्राथमिकता कोभूल रहा है धरा पर संस्कृति की धारा को …
अभी अभी कुछ पंक्तियाँ पढ़ी जिसमें हीर रांझे से बोलती है कि सब छोड़ मेरे पास आजा| वे पंक्तियाँ पढ़ कर मष्तिस्क में उन्माद हुआ और कुछ पंक्तियाँ कुछ इस प्रकार बनी – ना बिन तेरे जग मेरा हीरिये, ना बिन तेरे ये जीवन छोड़ के सब में आयूँ दर तेरे, ना बिन तेरे मुझे …