अम्बर में जब छाए काले मेघा प्यासी धरती को एक आस लगी बरखा की बूंदे जब सिमटी आँचल में धरा की अपनी प्यास बूझी जन जन में उल्लास उठा हर ओर एक उन्माद दिखा बूंदों ने जब सींचा जड़ों को वृक्षों ने भी श्रृंगार किया देख धरा के वैभव को मयूर ने भी नृत्य किया …
दिवस के प्रथम प्रहार में सूरज अंधियारा हरता है पर मानव के जीवन में हर क्षण मानव ही मरता है भोर भये आँगन में पंछियों का स्वर घुलता है पर मानव के जीवन में हर क्षण कोलाहल ही गूंजता है ब्रह्म मुहूर्त से गोधुली वेला तक मानव के कर्म का चक्र चलता है पर मानव …
श्वेत वर्ण से ढँकी ये वादी, श्वेत तो शान्ति का है प्रतीक आज ना जाने ये श्वेत दे रहा क्यों शोक सन्देश लहुलुहान है ये धरती आज, सहमा है यहाँ जन जन सुनाई देती है हर ओर सिर्फ एक ही चिंघाड – रण रण रण देखता हूँ जब में भारत के मुकुट का ये हाल …
हिमालय की चोटी से शत्रु ने ललकारा हैआज बता दो बल कितना है भारत माँ के वीरों मेंसीमा लांघ शत्रु चढ़ आया आज तुम्हारे द्वारेमचा रहा इस धरती पर वो उद्दंड उत्पात रणक्षेत्र में हुआ कोलाहल जागो भारत के वीरोंजाग अपनी निद्रा से भारत माँ की पुकार सुनोलगा हुंकार रण की शत्रु ने तुम्हें ललकारा …
पावन धरा पर राज करते कपूतोंअब तो निद्रगोश से निकलोभटक रहा राष्ट्र में हर पथिकअब तो अपने लोभ त्यागोउठो भारत माता के निर्लज्ज कपूतोंकुछ तो संकोच करोराष्ट्र निर्माण कार्य मेंकुछ तो नव प्राण भरोनव निर्माण कर इस धरा परजन जीवन का मार्ग दर्शन करोउठो धरा के निर्लज्ज कपूतोंकुछ तो जीवन में संकोच करोभोर भई नव …
जीवन में झेले दुःख अत्यंत सुख की नहीं मुझे कोई आशा अश्रुओं से में अपने हृदयाग्नी भडकाता हूँ कुछ ऐसे ही मैं इस संसार में अपना जीवन यापन करता हूँ ना ही अब कोई आस है ना ही निरास जीवन से कोई भय निर्मोही निरंकार हो चला मैं अपने ही ह्रदय को आहात करता हूँ …
जो तुम संग मेरे आये, जीवन ने कुछ गीत सुनाये मद्धम से पुरवाई में महका मेरा आँगन जो तुम संग मेरे आये, जीवन ने यूँ गीत सुनाये सुबह के धुंधलके में, पंछियों ने पंख फडफडाये जिस पल नैन मैंने खोले, आमने तुमको पाया निंदिया कि गोद में भी, सपनों में तुम्हे पाया सजी संवारी दुल्हन …
घर से निकला था मैं जाने तो पाठशालापर रास्ते में ही मिल गई मुझे मधुशालामधुशाला में जा बैठा मैं भर अपना प्यालातभी देखी शिव पर चढती एक मालादेख शिव की प्रतिमा मधुशाला मेंखोजने चला मैं सत्य की राह मेंपहुंचा फिर मैं मधुशालाबहुत खोजा सत्य पर मुझे ना मिलाफिर बैठ मधुशाला में भर अपना प्यालाजो घूँट …
धीर धर बैठे हैं धरा परबादलों की ओढ़ चादरना अब चाह है सुरबाला कीना है कोई चाह मधुशाला केअधरों पर अब है देव मंत्रमष्तिष्क में है निर्मोह का तंत्रसाधू बन कर रहे हैं तपस्याना है अब जीवन में कोई आसअटल है अब मेरा ये प्रणनहीं हारना है जीवन रणबहुत बहा नैनों से नीरबहुत हुआ जीवन …
तेरे नैनो की ये भाषालज्जा की हो जैसे परिभाषाकोई जाने ना क्या है इनका संदेशाकोई जाने ना कैसी है इनमें याचना अंतर्मन में सुर तेरे ही नाद करेंह्रदय में तेरे ही गीत गुनगुनाऊंतू जो रहे साथ मेरे इस जीवन मेंमैं तेरे ही गीत गाऊंतू सुनती रहे ऐसे गीत मैं गाऊंतेरे नैनो की ये भाषा, जाने …